पदोन्नति के लिए सीएम मोहन से आस

आठ साल से अटका हुआ है मामला, अभी नहीं हुआ समाधान भोपाल । मप्र के कर्मचारियों का दुर्भाग्य ही है कि प्रदेश में भाजपा व कांग्रेस की सरकारों में भी…

पदोन्नति के लिए सीएम मोहन से आस

आठ साल से अटका हुआ है मामला, अभी नहीं हुआ समाधान

भोपाल । मप्र के कर्मचारियों का दुर्भाग्य ही है कि प्रदेश में भाजपा व कांग्रेस की सरकारों में भी उनकी पदोन्नति का रास्ता नहीं खुल सका है। राजनैतिक नफा नुकसान के फेर में प्रदेश के कर्मचारियों को सरकार पदोन्नति देने से बच रही है। इसके लिए न्यायालय को सरकार बतौर हथियार प्रयोग कर रही है। इसकी वजह से सरकार को आर्थिक हानी तो हो ही रही है, साथ ही बड़ी संख्या में कर्मचारियों को भी बगैर पदोन्नति के ही सेवानिवृत्त होना पड़ रहा है। यह बात अलग है कि इस दौरान पदोन्नति का रास्ता निकालने के लिए जरुर जमकर दिखावा किया गया है। दरअसल प्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण के मामले को लेकर विवाद की स्थिति बनने के बाद सरकार ने इस मामले से खुद को अलग करने के लिए मामले को टालना ही उचित समझा है। यही वजह है कि मामला सुलझने की जगह उलझता ही जा रहा है। इस बीच मामले की सुनवाई के लिए सरकार वकीलों को करीब बीस करोड़ की फीस का भुगतान कर चुकी है। इसके अलावा मंत्रियों की समिति से लेकर अन्य तरह के दिखावटी प्रयास भी कर चुकी है। इस बीच शिवराज सरकार फिर कमलनाथ और फिर शिवराज सरकार के बाद अब प्रदेश में डॉ मोहन यादव की सरकार आ गई है। पुरानी सरकारों से निराशा हाथ लगने के बाद अब नई सरकार से कर्मचारियों को इस मामले में उम्मीद लगी हुई है। पदोन्नति का मामला भले ही सुप्रीम कोर्ट में चल रहा हो, लेकिन मप्र हाईकोर्ट कई प्रकरणों में कहा चुका है कि पदोन्नति पर कोई रोक नहीं है। हाईकोर्ट में अलग-अलग बेंचों में लगे कुछ प्रकरणों में सुनवाई के बाद सरकार को कर्मचारियों को पदोन्नति देनी पड़ी है। इस बीव प्रदेश में करीब सवा लाख कर्मचारियों को बिना पदोन्नति के ही सेवानिवृत्त होना पड़ा है। दरअसल मध्य प्रदेश में पिछले आठ वर्ष से सरकारी कर्मचारियों की पदोन्नतियां नहीं हुई हैं। वर्ष 2016 में हाईकोर्ट जबलपुर ने पदोन्नति नियम 2002 को निरस्त कर दिया था। तब से अब तक तीन सरकार बदल चुकी हैं , लेकिन कोई भी सरकार पदोन्नति का रास्ता नहीं निकाल पाई हैं। मामला पदोन्नति में आरक्षण को लेकर फंसा हुआ है। इसको लेकर शिवराज सरकार ने समिति भी बनाई और वरिष्ठ अधिवक्ताओं से नियम भी बनवाए पर उनका फायदा कर्मचारियों को नहीं मिल सका है। इस बीच हजारों अधिकारी- कर्मचारी बिना पदोन्नत हुए ही सेवानिवृत्त होने का मजबूर हो चुके हैं।
शिवराज के बाद कमलनाथ सरकार भी 15 माह के लिए आई पर उसने भी कुछ नहीं किया। मार्च 2020 में फिर शिवराज सरकार बनी और उन्होंने पदोन्नति के विकल्प के रूप में उच्च पद का प्रभार देने का निर्णय लेकर कर्मचारियों को साधने का प्रयास किया। प्रकरण अब भी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। अब 2016 के बाद से यह चौथी सरकार है और कर्मचारियों को उम्मीद है कि मोहन सरकार पदोन्नति में आरक्षण को लेकर कोई ठोस प्रयास कर इसका रास्ता निकालेगी। इसी बीच पशुपालन विभाग, नगर निगम, स्कूल शिक्षा समेत कुछ विभागों के कर्मचारी पदोन्नति को लेकर सिंगल-सिंगल याचिकाएं लगाई। जिसमें उन्हें पदोन्नति का लाभ भी मिल गया है। हाईकोर्ट ने कई प्रकरणों में कहा है कि पदोन्नति में कोई रोक नहीं है। सपाक्स के अध्यक्ष केएस तोमर का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति पर कोई रोक नहीं लगाई है। सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ पदोन्नति के आदेश को पालन करवाने के मामले में सुनवाई चल रही है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कई प्रकरणों में हाईकोर्ट ने कहा है कि पदोन्नति पर कोई रोक नहीं है। वरिष्ठता के आधार पर पदोन्नति दी जा सकती है। लेकिन सरकार पदोन्नति ही नहीं देना चाहती है। पदोन्नति प्रारंभ करने के लिए सरकार को रास्ता जल्द निकालना चाहिए। पदोन्नति न होने से कर्मचारियों में हताशा का भाव बढ़ रहा है। नियम में समानता न होने के कारण भी प्रशासनिक कामकाज प्रभावित हो रहा है। कनिष्ठ अपने वरिष्ठ से ऊपर निकल गए हैं। इसका प्रभाव सरकारी दफ्तरों की कार्य संस्कृति पर भी पड़ रहा है।

समिति व उप समिति की अनुशंसा पर अमल नहीं


राज्य सरकार ने नौ दिसंबर 2020 को प्रशासन अकादमी के महानिदेशक की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी। समिति से 15 जनवरी 2021 तक अनुशंसा मांगी थी। तय समय से कुछ दिन बाद समिति ने अपनी अनुशंसा दे भी दी, लेकिन उन पर अमल ही नहीं किया गया। इसके बाद सरकार ने 13 सितंबर 2021 को तत्कालीन गृहमंत्री डा. नरोत्तम मिश्रा की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल उपसमिति का गठन कर दिया। समिति ने अपनी अनुशंसा तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को दी। इसके बाद कुछ विभागों में कार्यवाहक पदोन्नति का रास्ता निकाला गया, लेकिन उसका भी पूरी तरह से कर्मचारियों को फायदा नहीं मिल सका है।

लाखों कर्मचारियों को हो रहा नुकसान


मध्य प्रदेश के लगभग सात लाख कर्मचारियों को आठ साल से पदोन्नति का इंतजार खत्म नहीं हो रहा है। वैसे इसे लेकर सरकार भी गंभीर नहीं है और दो साल में दो समितियां भी बना चुकी है, पर समितियों की अनुशंसा का लाभ सिर्फ कार्यवाहक पदोन्नति में सिमट गया है। वरिष्ठ पद का प्रभार देने की इस वैकल्पिक व्यवस्था में कर्मचारियों को आर्थिक लाभ से वंचित होना पड़ रहा है। प्रदेश में हर माह औसतन डेढ़ हजार कर्मचारी सेवानिवृत हो रहे हैं। उल्लेखनीय है कि पदोन्नति में आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। इसलिए अप्रैल 2016 से पदोन्नति पर रोक लगी है। इस बीच 1 लाख 25 हजार से अधिक कर्मचारी सेवानिवृत हो चुके हैं। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को मध्य प्रदेश लोक सेवा (पदोन्नति) नियम 2002 खारिज कर दिया था।