क्या चुनाव बाद बढ़ जाएंगे पेट्रोल-डीजल के दाम? कच्चे तेल में उबाल ने दिया संकेत…
हाल की भू-राजनीतिक उठापटक की वजह से ग्लोबल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतें 90 डॉलर प्रति बैरल के पार हो गईं हैं। इसके बावजूद भारत में फ्यूल की कीमतें…
हाल की भू-राजनीतिक उठापटक की वजह से ग्लोबल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतें 90 डॉलर प्रति बैरल के पार हो गईं हैं।
इसके बावजूद भारत में फ्यूल की कीमतें स्थिर हैं। वहीं, पिछले महीने तेल कंपनियों ने पेट्रोल और डीजल के दामों में दो रुपये की कटौती की थी।
कच्चे तेल की कीमतें लगातार दो हफ्तों तक बढ़ी हैं। यह छह महीने में पहली बार 90 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को पार कर गईं हैं। ऐसे में लोकसभा चुनाव के बाद पेट्रोल-डीजल के रेट बढ़ सकते हैं।
इस वर्ष में अब तक कच्चे तेल के दाम भारत में 10 प्रतिशत से अधिक बढ़े हैं। सीरिया में ईरान के दूतावास पर हमले के बाद कीमतों में मौजूदा बढ़ोतरी हुई है।
हमले के बाद उपजे राजनीतिक तनाव से दामों में वृद्धि का सिलसिला जारी है। इजराइल-फिलिस्तीन और रूस-यूक्रेन युद्धों के उग्र होने से वैश्विक तेल आपूर्ति में और गिरावट आ सकती है।
भारत में कीमतों को लेकर अटकलें
वैसे, इसकी संभावना नहीं है कि चुनाव के अंत तक घरेलू पेट्रोल और डीजल की कीमतों में संशोधन किया जाएगा। साल 2010 और साल 2014 के बीच दोनों ईंधन की कीमतों को नियंत्रणमुक्त किया गया था।
शुरुआत में कीमतों को हर पखवाड़े संशोधित किया जाता था, लेकिन जून 2017 से तेल कंपनियों ने कीमतों को दैनिक रूप से संशोधित करना शुरू किया।
कुछ वर्षों में संशोधन अनियमित दिखे हैं। केंद्र द्वारा 15 मार्च 2024 को 12वीं कटौती की घोषणा करने से पहले मई 2022 से रिकॉर्ड 23 महीनों तक कीमतें स्थिर रहीं।
कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें आने वाले दिनों में कटौती की किसी भी संभावना को लगभग नकार रही हैं। 2023-24 में कम कीमतों के कारण, तेल कंपनियां बहुत लाभ में रही हैं और उनके पास किसी अस्थायी उछाल को झेलने की क्षमता है।
आदर्श आचार संहिता का जोखिम नहीं
आदर्श आचार संहिता सरकार को कोई नई नीति या राजकोषीय उपाय लाने से रोकती है, लेकिन ईंधन की कीमतों में संशोधन उस श्रेणी में नहीं आता है, इसलिए तेल बाजार कंपनियां तकनीकी रूप से अपनी जरूरत के अनुसार कीमतें बढ़ाने और घटाने के लिए स्वतंत्र होती हैं। साल 2019 में जब देश में चुनाव चल रहा था, तब कुछ मौकों पर कीमतों में मामूली संशोधन हुआ था।
चारों तेल कंपनियों की स्थिति
अमूमन जब कच्चे तेल की कीमतें 85 डॉलर प्रति बैरल पर होती हैं तो तेल कंपनियां बराबरी पर आ जाती हैं। दाम कुछ कम होने पर उनकी लाभप्रदता बढ़ती है और पंप पर कीमतों में कटौती की संभावना बढ़ती है, लेकिन मामूली वृद्धि भी उन्हें घाटे में ला देती है और मूल्य वृद्धि के लिए मजबूर करती है।
आईओसी, बीपीसीएल और एचपीसीएल ने अप्रैल-दिसंबर 2023 तक मजबूत 69,000 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ कमाया। यह पूरे वित्त वर्ष 2013 के लाभ से कहीं अधिक है, जब कीमतें काफी ऊपर थीं।
फायदा कैसे होता है?
केंद्र और राज्य सरकारें उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क, उपकर, रॉयल्टी और वैट के जरिए तेल से राजस्व हासिल करती हैं।
केंद्र तेल कंपनियों से लाभांश के साथ कंपनियों से कॉर्पोरेट/आयकर भी अर्जित करता है। 2022-23 में केंद्र ने तेल से 14.3 ट्रिलियन कमाए, जबकि राज्यों को 3.2 ट्रिलियन मिले।
बीते कुछ वर्षों में उत्पाद शुल्क और वैट दरों में लगातार वृद्धि से सरकार का तेल से राजस्व 30 फीसदी से अधिक बढ़ चुका है।