बिलासपुर के एनटीपीसी में लगेगा विश्व का पहला 800 मेगावाट का एडवांस एयूएससी प्लांट

बिलासपुर। सरकारी क्षेत्र की कंपनी एनटीपीसी लिमिटेड और भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड भेल मिलकर 800 मेगावाट का एडवांस अल्ट्रा सुपर क्रिटिकल थर्मल पावर प्लांट स्थापित करेंगे। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण…

बिलासपुर के एनटीपीसी में लगेगा विश्व का पहला 800 मेगावाट का एडवांस एयूएससी प्लांट

बिलासपुर। सरकारी क्षेत्र की कंपनी एनटीपीसी लिमिटेड और भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड भेल मिलकर 800 मेगावाट का एडवांस अल्ट्रा सुपर क्रिटिकल थर्मल पावर प्लांट स्थापित करेंगे। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को बजट 2024-25 पेश करते हुए यह जानकारी दी। यह प्लांट बिलासपुर के सीपत स्थित एनटीपीसी के मौजूदा संयंत्र का हिस्सा होगा। तकनीक को स्वदेशी रूप से विकसित किया गया है, जिसमें इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र, भेल और एनटीपीसी का संयुक्त अनुसंधान और विकास शामिल है। वर्तमान में भारत के थर्मल पावर प्लांट 32 प्रतिशत औसत दक्षता पर काम करते हैं, जबकि ्रस्ष्ट तकनीक का उपयोग करके इसे 46 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है। ्रस्ष्ट तकनीक से 10-15 प्रतिशत कार्बन-डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कमी आती है।
यह परियोजना दो चरणों में पूरी होगी, जहां पहले चरण में अनुसंधान और विकास कार्य पूरा हो चुका है। दूसरे चरण में 800 मेगावाट की क्षमता वाला एयूएससी तकनीक का प्रदर्शन प्लांट स्थापित किया जाएगा। यह प्लांट भारत सरकार के बिजली मंत्रालय और हृञ्जक्कष्ट के तत्वावधान में स्थापित होगा।
इस तकनीक का प्रदर्शन अब तक कहीं नहीं हुआ है, जबकि अमेरिका, यूरोप, चीन और जापान इसे विकसित करने के प्रयास कर रहे हैं। इस परियोजना से न केवल ऊर्जा दक्षता में वृद्धि होगी, बल्कि पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

एयूएससी थर्मल पावर प्लांट क्या हैं?


्रस्ष्ट तकनीक को स्वदेशी रूप से विकसित किया गया है, जिसमें इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र, क्च॥श्वरु और हृञ्जक्कष्ट का संयुक्त अनुसंधान और विकास शामिल है। वर्तमान में भारत के थर्मल पावर प्लांट 32 प्रतिशत औसत दक्षता पर काम करते हैं, जबकि ्रस्ष्ट तकनीक का उपयोग करके इसे 46 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है। इस तकनीक में 710-720 डिग्री सेल्सियस के उच्च तापमान वाले स्टीम का उपयोग होता है, जबकि वर्तमान तकनीक में 540-600 डिग्री सेल्सियस तापमान का उपयोग होता है। इससे प्लांट को प्रति मेगावाट-घंटे में कम कोयला चाहिए होता है, जिससे उत्सर्जन में कमी आती है। क्च॥श्वरु के अनुसार, ्रस्ष्ट तकनीक से 10-15 प्रतिशत कार्बन-डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कमी आती है।

परियोजना के चरण
यह परियोजना दो चरणों में पूरी होगी। पहले चरण में अनुसंधान और विकास कार्य पूरा हो चुका है। दूसरे चरण में 800 मेगावाट की क्षमता वाला एयूएससी तकनीक का प्रदर्शन प्लांट स्थापित किया जाएगा। यह प्लांट भारत सरकार के बिजली मंत्रालय और हृञ्जक्कष्ट के तत्वावधान में स्थापित होगा।

वैश्विक परिप्रेक्ष्य


इस तकनीक का प्रदर्शन अब तक कहीं नहीं हुआ है, जबकि अमेरिका, यूरोप, चीन और जापान इसे विकसित करने के प्रयास कर रहे हैं। इस परियोजना से न केवल ऊर्जा दक्षता में वृद्धि होगी, बल्कि पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।