कभी भी दरक सकते हैं 50 से अधिक पुल

उम्रदराज पुलों और बांधों ने बढ़ाई सरकार की चिंता भोपाल । इस मानसून में बिहार में अब तक 13 पुलों के गिरने से देशभर में लोग हर पुल को शंका…

कभी भी दरक सकते हैं 50 से अधिक पुल

उम्रदराज पुलों और बांधों ने बढ़ाई सरकार की चिंता

भोपाल । इस मानसून में बिहार में अब तक 13 पुलों के गिरने से देशभर में लोग हर पुल को शंका की नजर से देख रहे हैं। अगर मप्र की बात करें तो कई पुल आज इस स्थिति में हैं कि वे कभी भी दरक सकते हैं। उम्रदराज हो चुके पुलों से आज भी हजारों वाहन रोज निकल रहे हैं। मप्र में लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के कुल 80 ब्रिजों को मरम्मत की जरूरत है। हादसों की आशंका के मद्देनजर अब इन्हें तत्काल सुधार की श्रेणी में रखा गया है। आश्चर्य की बात तो यह है कि इसमें 65 पुल ऐसे हैं जो 68 साल पुराने हैं। इसका निर्माण साल 1956 से 1961 के बीच किया गया था। करीब 50 पुल तो ऐसे हैं कि जो कभी भी दरक सकते हैं। हालांकि चीफ इंजीनियर ब्रिज भोपाल जीपी वर्मा का कहना है कि विभाग के अंतर्गत आने वाले सभी पुलों की निगरानी की जा रही है। जरूरत के अनुसार मरम्मत कराया जा रहा है। कुछ साल पहले बारिश से क्षतिग्रस्त हुए पुलों का पुर्ननिर्माण कार्य चल रहा है।
गौरतलब है कि करीब चार साल पहले बारिश के दौरान मप्र में 9 बड़े पुल टूटे थे, लेकिन चार साल बाद भी वे अधूरे हैं। वहीं 50 पुलों पर खतरे के बीच ट्रैफिक चल रहा है।राहतगढ़ के प्रहलाद सिंह बताते हैं कि विदिशा से सागर को जोडऩे वाला राहतगढ़ का पुल बहुत संकरा और छोटा है। बारिश से बावन नदी जब उफान पर आती है तो अक्सर इस पुल पर पानी आ जाता है। संकरा होने से अक्सर यहां जाम लगता है। ये परेशानी राहतगढ़ से प्रहलाद सिंह की नहीं बल्कि प्रदेशभर के कई लोगों की है। अभी कई नदी-नाले उफान पर होने से कई पुलों से आवागमन प्रभावित है। छतरपुर से टीकमगढ़ जिले को जोडऩे वाले धसान पुल से यातायात ठप हो गया। उधर, चार साल पहले क्षतिग्रस्त हुए दस बड़े पुलों का दोबारा निर्माण किया जा रहा है, इनमें अब तक महज एक पुल पूरा बन पाया है। क्षतिग्रस्त पुलों के निर्माण में 230 करोड़ से अधिक राशि खर्च होगी। प्रदेश में दो साल पहले भारी बारिश के चलते भोपाल-जबलपुर हाईवे पर कलियासोत नदी पर बने पुल की सर्विस रोड धंस गई थी।

 

पुलों का परीक्षण में आई हकीकत


प्रदेश में 100 से अधिक ऐसे पुल हैं, जो अंग्रेजों के समय या आजादी के कुछ साल बाद बनाए गए थे और ये पुल खतरा बने हुए हैं। सेतु परिक्षेत्र की जानकारी के अनुसार 60 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले 1,076 ऐसे पुल हैं जिनकी आयु 50 से 60 साल हो चुकी है। विगत वर्षों में पीडब्ल्यूडी ने रिपोर्ट तैयार करने के लिए सेफ्टी ऑडिट किया है। पहले चरण में कुल 92 ब्रिजों का फ्रांस की एआईसी कंपनी ने ऑडिट किया। इसके अलावा 89 ब्रिजों का ऑडिट दिल्ली की फीडबैक कंपनी ने किया। अफसरों ने बताया कि मशीनों और लेजर की अत्याधुनिक तकनीक के जरिए ऑडिट किया गया। सात करोड़ की मोबाइल ब्रिज इंफेक्शन यूनिट के जरिए ब्रिजों में लगा लोहा, कंक्रीट, अंडर वाटर टेस्टिंग, कंटूर समेत अन्य परीक्षण किए गए। प्रदेश में पीडब्ल्यूडी का गठन वर्ष 1956 में हुआ था। लेकिन इससे पहले भी अंग्रेजों ने कई ब्रिजों का निर्माण कराया था। इसके अलावा विभाग ने वर्ष 1978 तक कुल 322 रेलवे ओवर ब्रिज (आरओबी), फ्लाईओवर, वृहद पुल का निर्माण कराया। जो कम से कम 45 साल पुराने हो चुके हैं। साल 1956 से 1961 के बीच प्रदेश में पीडब्ल्यूडी ने 65 पुलों का निर्माण कराया था। इस साल तैयार हुई 86 पुलों की तत्काल मरम्मत की सूची में इन ब्रिजों की संख्या 32 है।

 

ग्वालियर- चंबल, सागर संभाग में खस्ताहाल ब्रिज सर्वाधिक


बीते विधानसभा सत्र के दौरान सरकार को भेजी गई पीडब्ल्यूडी के ब्रिज जोन की रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्वालियर, चंबल और सागर संभाग में खस्ताहाल ब्रिजों की संख्या सर्वाधिक है। इसके बाद जबलपुर, इंदौर और उज्जैन संभाग में ब्रिजों की स्थिति खराब है। वर्ष 2021, अक्टूबर में ग्वालियर और चंबल संभाग में बाढ़ के दौरान सात पुल टूट गए थे। तब जर्जर या सालों पहले बने होने के कारण कमजोर हो चुके पुल का सुधार कार्य भी शुरू किया गया था। 3 अगस्त 2021 में सिंध नदी में बाढ़ से रतनगढ़ (दतिया जिला) का पुल टूटा था। 16 अगस्त 2022 को रायसेन जिले के बेगमगंज में बीना नदी पर बने पुल का एक हिस्सा बह गया था। जुलाई 2023 में  मंडला में बारिश से थावर नदी का पुल टूटा था। लोक निर्माण और जल संसाधन विभाग सभी पुलों की जानकारी जुटा रहे हैं। ग्वालियर-चंबल संभाग में बने 7 पुल अतिवृष्टि के चलते दो साल पहले ढह गए थे। ग्वालियर संभाग से 92 पुलों की डिटेल भोपाल भेजी गई है। वहीं पीडब्ल्यूडी ने प्रदेश के ऐसे पुलों की मरम्मत के लिए शासन से राशि मांगी है जिनमें 5 लाख से अधिक खर्च होंगे।

इन पुलों पर हादसे का खतरा

प्रदेश में कई पुल ऐसे हैं जिन पर हादसे का खतरा बना रहता है। कटनी को बस स्टैंड से जोडऩे वाला पुल अंग्रेजों के जमाने का है। ब्रिज का पुर्ननिर्माण 13 साल पहले प्रारंभ किया गया था। विदिशा में बेतवा नदी पर बना रंगई पुल सिंधिया रियासत के समय का है। वर्ष 1897 में बने इस पुल में दो बार सुराख हो चुके हैं। भिंड जिले के गोहद से गोहद चौराहा को जोडऩे वाली बेसली नदी पर बना 46 साल पुराना पुल जर्जर अवस्था में था। वर्ष 2021 में बने पुल में उद्घाटन से पहले दरारें आ गई थीं। टीकमगढ़ जिले के ओरछा स्थित जामनी और बेतवा नदी पर बना पुल जर्जर अवस्था में है। विदिशा से सागर के बीच राहतगढ़ और नीरखेड़ी के बीच स्थित बावना नदी पर बने पुल पर आज भी सिंगल रोड जैसी आवाजाही है। कागपुर पर बना पुल विदिशा- अशोकनगर स्टेट हाईवे पर स्थित है। ऊंचाई कम होने से हर साल बाढ़ की वजह से रास्ता बंद हो जाता है। छिंदवाड़ा के लोधीखेड़ा-खमारपानी रोड पर कन्हान नदी पर बना पुल क्षतिग्रस्त हो गया था। इस पुल को 30 करोड़ से फिर बनाया जा रहा है।