पवन मल्होत्रा ने ‘फकीर’ के लिए नेशनल अवॉर्ड और OMG 2 की सफलता पर की बातचीत
अपने फिल्मी करियर के लंबे सफर में अपनी पसंद का काम कर पाने को लेकर पवन कहते हैं, ‘इसके लिए कभी-कभी अर्धविराम लेना पड़ता है। अगर आप डिजिटल प्लेटफार्म पर…
अपने फिल्मी करियर के लंबे सफर में अपनी पसंद का काम कर पाने को लेकर पवन कहते हैं, ‘इसके लिए कभी-कभी अर्धविराम लेना पड़ता है। अगर आप डिजिटल प्लेटफार्म पर देखें, तो मेरे तीन शो ‘टब्बर’, ‘ग्रहण’ और ‘शिक्षा मंडल’ आए हैं। अभी फार्मा इंडस्ट्री पर आधारित शो ‘पिल’ आया है। इसके बाद मैंने ‘कोर्ट-कचहरी’ किया है। जिसमें मैं वकील की भूमिका में हूं। ‘ओएमजी 2’ में मैंने जज की भूमिका निभाई थी। कोशिश यही रहती है कि लगातार कुछ अलग करते रहें।
उन्होंने कहा, ''डिजिटल प्लेटफार्म से एक और खिड़की खुली है। हम तो इंतजार करते हैं कि अच्छा काम आए। जिसका अच्छा विषय हो। जरूरी नहीं कि सब सामाजिक विषय से जुड़े मुद्दे हों तो आप उसमें कोई हल भी दे पाएं। कभी-कभी कोई सवाल उठाना ही महत्वपूर्ण होता है ताकि लोग उसके बारे में सोचें। मेरे दिमाग में यह बात हमेशा रहती है कि ऐसा काम करो कि लोग देखने के बाद उसके बारे में सोचें। फिल्में और टीवी हमेशा से करता आया हूं। ऊपरवाले की कृपा रही कि बेहतरीन स्क्रिप्ट, फिल्में और पात्र मुझे मिलते रहे। मुझे शुरू से लेकर आज तक सारा काम खुद मिला है।''
'फकीर' के लिए मिला पहना नेशनल अवॉर्ड
मुझे मेरा पहला नेशनल अवार्ड 1998 में फिल्म ‘फकीर’ के लिए मिला था। फिल्म ‘चिल्ड्रन आफ वार’ को तो फ्रांस में अवार्ड मिला। साउथ में पहली फिल्म की, तो वहां का प्रतिष्ठित नंदी अवार्ड मिला। मैं इसलिए तेलुगु फिल्म नहीं कर पा रहा हूं क्योंकि मुझे भाषा की बहुत समस्या है। मुझे लगता है कि बतौर कलाकार मेरा काम प्रभावित होगा। कोशिश यही रही है कि जो भी काम झोली में आया, उसे पूरी ईमानदारी और मजे लेकर करें।’
किरदार समझना जरूरी
कई बार कलाकारों के लिए गंभीर पात्रों से निकलना मुश्किल होता है। हालांकि कोई गंभीर भूमिका निभाने के बावजूद पवन को किरदार से निकलने में दिक्कत नहीं होती। वह कहते हैं, ‘मुझे मालूम है कि बहुत सारे कलाकार ऐसा बोलते हैं कि दो-तीन महीने तक उसी पात्र में रचे-बसे रहे। किसी ने यह भी कहा कि काउंसलिंग के लिए जाना पड़ा, लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ।
‘टब्बर’ सीरीज करने के दौरान जब अंदर लाइटिंग या कुछ और काम चलता था, तब हम फ्री होते थे तो मैं बाहर गली में बच्चों के साथ खेलता था जबकि मेरा पात्र मर्डर करके आता है। ‘चिल्ड्रन आफ वार’ तो बांग्लादेश की कहानी थी, उसमें मैं पाकिस्तानी अफसर की भूमिका में था। उसमें तो बस दुष्कर्म और हत्या जैसी घटनाएं ही थीं। मगर ऐसा नहीं था कि मैं उसी किरदार की तरह सोच या बात कर रहा था। बतौर कलाकार हमारा काम है कि हम पात्र को समझें। मैं किरदार निभाने के बाद उससे तुरंत निकल आता हूं।’
याद करेगी दुनिया
‘सर्कस’ धारावहिक के 35 साल पूरे हो रहे हैं। उसकी यादों को ताजा करते हुए पवन कहते हैं, ‘मैंने अधिकांशत: एक समय पर एक ही काम किया है। जिस सर्कस के साथ हम शूटिंग कर रहे थे वो जहां-जहां पर जाता था, हम उसके साथ जाते थे। गोवा से सतारा गए, फिर रत्नागिरी और पुणे गए। हम सब साथ में समय बिताते थे। सुबह नौ बजे तो कई बार सुबह सात बजे से हम सर्कस के रिंग में शूट करते थे। कई बार चलते सर्कस के बीच शूट कर लेते थे। शो से जुड़ी अच्छी यादें हैं।’
फिल्मों में अपनी विरासत को छोड़ने के सवाल पर पवन कहते हैं, ‘मैंने दिल्ली में एक्टिंग शौक के तौर पर शुरू की थी। उस वक्त नहीं सोचा था कि मुंबई आकर फिल्मों में काम करेंगे। अब पीछे मुड़कर देखता हूं तो यहीं कहूंगा कि ऊपरवाले की कृपा रही है। भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के कोलाज में भले ही मेरी कोई बहुत बड़ी फोटो न हो, लेकिन एक कोने में मेरा बिंदु है, जो मेरा कोना है।’