यूपी के इस प्राचीन मंदिर में होती है विश्व में सबसे पहले आरती…जानें इस मान्यता का सच!
वाराणसी : भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी काशी दुनिया के प्राचीनतम शहरों में से एक है. इस प्राचीन शहर में नाथों के नाथ बाबा विश्वनाथ का वास है. काशी…
वाराणसी : भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी काशी दुनिया के प्राचीनतम शहरों में से एक है. इस प्राचीन शहर में नाथों के नाथ बाबा विश्वनाथ का वास है. काशी में विराजे बाबा विश्वनाथ के कई ऐसे अनसुने किस्से हैं जिन्हें कम ही लोग जानते हैं. पूरी दुनिया में बाबा विश्वनाथ को “नाथों का नाथ” कहते हैं. क्योंकि हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार विश्व के संचालन की जिम्मेदारी उन पर ही हैं. शायद यदि वजह है कि पूरे दुनिया में काशी विश्वनाथ एक ऐसा मंदिर है जहां सुबह की आरती सबसे पहले होती है. इस आरती को मंगला आरती के नाम से जानते है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मंगला आरती से ही हर रोज बाबा विश्वनाथ को नींद से जगाया जाता है. भोर में 3 से 4 के बीच यह आरती होती है. इस आरती की तैयारी रात 1.30 बजे से शुरू होती है.
मंगला आरती की विधि
एक घंटे की इस आरती में मंदिर के अर्चक ” जगाए हारी भोले शंकर न जागे” के गीत से बड़े ही भाव और दुलार से बाबा विश्वनाथ को नींद से जगाते हैं. बाबा को जगाने के बाद उन्हें गंगा जल, दूध, पंचामृत सहित अन्य चीजों से स्नान कराया जाता है. इस दौरान उन्हें चंदन की लेप के साथ भांग, बेलपत्र भी चढ़ाया जाता है. स्नान की प्रकिया के बाद उनका विधिवत श्रृंगार होता है और फिर उनकी आरती उतारी जाती है. इस अद्भुत क्षण को जो भी देखता है वो बाबा के भक्ति के रंग में रम जाता है.
काशी विश्वनाथ के बाद अन्य मंदिरों में होती है आरती
काशी विश्वनाथ मंदिर के अर्चक श्रीकांत मिश्रा ने बताया कि बाबा विश्वनाथ पूरे जगत के नाथ है. उन्हें कोई भला क्या सुलायेगा, क्या जगायेगा लेकिन भक्तों का प्रेम और भाव है कि वो हर दिन अपने आराध्य को नींद से जगाते हैं और रात में शयन आरती से सुलाते हैं. बाबा विश्वनाथ भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व और जगत के नाथ हैं इसलिए पूरी दुनिया में सबसे पहली आरती बाबा विश्वनाथ की होती है फिर उनके आरती के बाद अन्य मंदिरों में आरती किया जाता है.
दिन में 5 बार होती है आरती
बताते चलें कि हर रोज काशी विश्वनाथ मंदिर में 5 बार आरती होती है. मंगला आरती से इसका क्रम शुरू होता है फिर दोपहर में भोग आरती उसके बाद सप्तऋषि आरती और फिर श्रृंगार आरती उसके बाद रात 10.30 पर शयन आरती से बाबा को काशीवासी सुलाते हैं.