धान की कस्टम मिलिंग का गणित: 3केजी फॉर्मूला अपनाओ, अमानक चावल देकर भी पूरी रकम पाओ
धान की कस्टम मिलिंग पर होगी 320 करोड़ की कमीशनखोरी भोपाल । मप्र में वर्ष 2023-24 में समर्थन मूल्य पर खरीदे गए धान की कस्टम मिलिंग होना है। आंकड़ों के…
धान की कस्टम मिलिंग पर होगी 320 करोड़ की कमीशनखोरी
भोपाल । मप्र में वर्ष 2023-24 में समर्थन मूल्य पर खरीदे गए धान की कस्टम मिलिंग होना है। आंकड़ों के अनुसार समर्थन मूल्य पर खरीदे गए करीब 46 लाख मीट्रिक टन धान में से 31 लाख मीट्रिक टन की कस्टम मिलिंग होनी है। यानी चावल बनाना है। लेकिन इस बीच प्रदेश में धान का कटोरा कहे जाने वाले बालाघाट जिले से चौंकाने वाला मामला सामने आया है। सूत्रों के अनुसार नागरिक आपूर्ति निगम के अधिकारियों और राइस मिलर्स के संगठन के बीच एक फॉर्मूला तैयार हुआ है, जिसके तहत प्रति लॉट 3 केजी अर्थात 3 हजार रूपए कमीशन के दिए जाने पर चावल लिया जाएगा तथा इसकी किसी भी स्तर पर जांच नहीं की जाएगी यानी राइस मिलर्स को फ्री छूट रहेगी की वह किसी भी स्तर का अमानक चावल बेखौफ प्रदाय कर सके। इस तरह अनुमान लगाया जा रहा है कि करीब 320 करोड़ रुपए की कमीशनखोरी होगी, जिसका कोई रिकॉर्ड नहीं होगा। गौरतलब है कि मप्र में समर्थन मूल्य पर धान की खरीदी पर हर साल करोड़ों रुपए की हेरफेर तो की ही जाती है। उसके बाद उस धान का चावल बनाने में उससे भी बड़ा खेल होता है। खरीदी गई धान को कस्टम मिलिंग करवाकर राइस मिलर्स से चावल उपार्जित किया जाता है। जिसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से उपभोक्ताओं को वितरित किया जाता है।
ऐसे शुरू होता है खेल
नागरिक आपूर्ति निगम (नान) के सूत्रों के अनुसार राइस मिलर्स कस्टम मिलिंग के माध्यम से चावल बनाकर देने के लिए नान अथवा राज्य विपणन संघ से अनुबंध करते है जिसके बाद उन्हें धान प्रदाय किया जाता है। कमीशनबाजी के चलते राइस मिलर्स को अनुबंध करने धान के डिलेवरी आर्डर जारी करवाने तथा चावल प्रदाय करने के लिए एक तयशुदा कमीशन राशि देनी पड़ती है, जो अनिवार्य है इसके बिना दिया हुआ चावल अमानक बताकर अमान्य कर दिया जाता है।
यह है भ्रष्टाचार का फॉर्मूला
प्रदेश में फिर से इसी तरह का अमानक स्तर का चावल प्रदाय करने की कोशिश की जा रही है। नान के सूत्रों का कहना है कि इस कारगुजारी में मुख्य सचिव, नागरिक आपूर्ति के महाप्रबंधक तथा प्रदेश के राइस मिलर्स शामिल हैं। राइस मिलर्स के संगठन के अध्यक्ष तथा अधिकारियों के साथ एक फॉमूले पर सहमति हुई है जिसके अनुसार प्रति लाट 3 केजी अर्थात 3 हजार रूपए कमीशन के दिये जाने पर चावल लिया जाएगा तथा इसकी किसी भी स्तर पर जांच नहीं की जाएगी यानी राइस मिलर्स को फ्री छूट रहेगी की वह किसी भी स्तर का अमानक चावल बेखौफ प्रदाय कर सके। इस फार्मुले की आड़ में बालाघाट जिले सहित मप्र के अन्य जिलों में अमानक चावल प्रदाय करने के रास्ते खोल दिए गए है। कमीशनबाजी के चक्कर में अमानक चावल उपभोक्ताओं को खाने के लिये विवश होना पड़ेगा।
कारगुजारी का ऐसे हुआ खुलासा
नान के अधिकारियों और मिलर्स के बीच कस्टम मिलिंग का जो फॉर्मूला तय हुआ है, वह गत दिनों सार्वजनिक हो गया। दरअसल, यह फॉर्मूला जबलपुर में एक सभा में राइस मिलर्स संगठन के अध्यक्ष द्वारा सार्वजनिक किया गया है। जिसमें प्रदेश के राइस मिलर्स मौजूद थे। जिसका एक वीडियो सामने आया है, जिसमें अध्यक्ष यह कहते सुने जा रहे हैं कि अधिकारियों और संगठन के बीच फॉर्मूला तय हुआ है, उस पर सभी को अमल करना जरूरी है। वहीं बालाघाट जिले में राइस मिल के जिला संगठन के अध्यक्ष द्वारा राइस मिलर्स को वाटसअप संदेश भेजकर 3केजी अर्थात 3 हजार रुपए प्रति लाट की रकम प्रदेश संगठन के पूर्व अध्यक्ष के पास जमा करने के निर्देश दिए गए। जिसके आधार राइस मिलर्स ने पूर्व में जमा किए गए लाट के मान से रकम जमा की। कुछ राइस मिलर्स द्वारा कमीशन की रकम दिए जाने से हिलाहवाली करने पर जिला अध्यक्ष भगत द्वारा यह बताकर राइस मिलर्स को धमकाया की खाद्य मंत्री की सहमति से यह फार्मूला तय किया गया है। जो राइस मिलर्स इस फार्मूले पर नहीं चलेगा उसे भुगतना पड़ेगा। यह जानकारी मिली है की अभी 1 सप्ताह पूर्व मोनू भगत सहित कुछ राइस मिलर्स प्रबंध संचालक नागरिक आपूर्ति निगम मिलने भोपाल पहुंचे थे। यह भी खबर लगी है की अब तक एकत्रित की गई 3 केजी फार्मूले की रकम अधिकारियों को ले जाकर दी गई है।
3 अरब से अधिक की कमीशनखोरी
जानकारों का कहना है कि धान की मिलिंग में 3 अरब से अधिक की कमीशनखोरी होने का अनुमान है। अकेले बालाघाट जिले में 130 करोड़ रूपए की राशि में खरीदी गई धान की कस्टम मिंलिग किए जाने पर गुणवत्ता निरीक्षक, जिला विपणन अधिकारी, जिला प्रबंधक नागरिक आपूर्ति निगम और लेखा अधिकारियों को कमिशन की रूप में कम से कम 20 करोड़ रूपए की राशि प्राप्त होती है। जिसका बंटवारा भोपाल से लेकर जिला स्तर तक अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों और राजनैतिक दलों तक पहुंचता है। इस कारण ही कोई इस कमीशनबाजी का कोई सवाल नहीं उठाता। सब के सब चुप्पी साधे हुए हैं। मरना सिर्फ राशन का चावल उठाने वाले उपभोक्ता का है। इन विसंगतियों के चलते खादय सुरक्षा अधिनियम का मखौल उड़ाया जा रहा है।
2019 में सामने आया था बड़ा घपला
गौरतलब है कि नान के अधिकारियों और राइस मिलर्स की मिलीभगत से बड़ा घोटाला 2019 में सामने आया था। 2019 में यहां के राइस मिलर्स ने पशुआहार तथा पोल्ट्रीफीड जैसा अमानक स्तर का चावल जिसका मूल्य लगभग 200 करोड़ रूपए था प्रदाय कर दिया था। इस मामले के प्रकाश में आने के बाद पूरे प्रदेश में भंडारित चावल की जांच की गई तो लगभग 700 करोड़ रूपए से अधिक का अमानक चावल गोदामों में पाया गया जो मानव उपयोग के काबिल ही नहीं था। अमानक चावल की खरीदी में संलिप्त बालाघाट जिले के लगभग 20 राइस मिलर्स तथा गोदाम मालिक, गोदाम प्रभारी एवं नागरिक आपूर्ति निगम के जिला प्रबंधकों के विरूद्ध आर्थिक अपराध अनुसंधान जबलपुर में एफआईआर दर्ज हुई है जिसकी जांच जारी है। ऐसा बताया जाता है लेकिन वास्तविकता कुछ और है। राजनेताओं के प्रभाव से मामले को लीपापोती कर ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।
पाटन विधायक अजय विश्नोई ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर लगाए आरोप
गत दिनों जबलपुर जिले में धान की मिलिंग में भ्रष्टाचार को लेकर पाटन विधायक अजय विश्नोई ने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को पत्र लिखकर भेजा है। पत्र में लिखा गया है कि जबलपुर जिले में धान, गेहूं के उपार्जन एवं धान की मिलिंग में भ्रष्टाचार के कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। मध्यप्रदेश शासन, अधिकारियों पर कार्यवाही करने की बजाय उन्हें संरक्षण दे रहा है।
ये है पत्र में लिखीं मुख्य बातें
जिला विपणन अधिकारी अर्पित तिवारी ने मार्च 2024 को बिना महाप्रबंधक की अनुमति से जिले से बाहर 16 मिलों को 46764 क्विंटल धान मिलिंग के लिए दे दी। नान ने 22.05.2024 को कारण बताओं सूचना पत्र जारी किया और 29.05.2024 को अवैधानिक कार्यवाही को वैधानिक कर दिया।
आज के डिजीटल युग में मध्यप्रदेश के वेयर हाउस मालिकों को किया जा रहा भुगतान किसी वेबसाइट पर नहीं दिखता है। जब, जिसने रिश्वत दी तब उसका भुगतान हो जाता है। कृपया सुनिश्चित करें कि वेयरहाउस मालिकों का भुगतान क्रम से हो। समय पर हो और भुगतान में पारदर्शिता हो। बेवसाईट पर दिखे।
राजस्व अधिकारियों द्वारा उपार्जन में गड़बड़ी कर रहे वेयरहाउस तथा ऐजेंसी पर छापा मारकर कार्यवाही की जाती है। परंतु, जिला विपणन अधिकारी उनके खिलाफ कार्यवाही नहीं करते, वरन, बचाने का प्रयास करते है। वर्तमान में मझौली क्षेत्र में जगदीश वेयरहाउस का प्रकरण उपलब्ध है।