कुंडली में राहु है कमजोर? स्फटिक की माला के साथ करें इस वैदिक मंत्र का जाप, तुरंत मिलेगा लाभ
वैदिक ज्योतिष शास्त्र में राहु और केतु को छाया ग्रह माना जाता है. यह दोनों ही ग्रह अक्सर बुरे परिणाम देते हैं. जिससे जीवन में कई तरह की समस्याएं पैदा…
वैदिक ज्योतिष शास्त्र में राहु और केतु को छाया ग्रह माना जाता है. यह दोनों ही ग्रह अक्सर बुरे परिणाम देते हैं. जिससे जीवन में कई तरह की समस्याएं पैदा होती हैं. वहीं अगर कुंडली में उनकी स्थिति मजबूत होती है तो जीवन में किसी तरह की कोई कमी नहीं आती. ऐसे में चलिए आज हम आपको इस रिपोर्ट में बताते हैं कि राहु-केतु को मजबूत करने के लिए किस तरह के उपाय करना चाहिए ताकि राहु-केतु की दृष्टि हमेशा आप पर सकारात्मक रहे.
दरअसल अयोध्या के ज्योतिषी पंडित कल्कि राम बताते हैं कि वैदिक ज्योतिष शास्त्र में राहु और केतु को छाया ग्रह कहा जाता है. जातक की कुंडली में अगर उनकी स्थिति ठीक रहती है तो व्यक्ति रंक से राजा बन सकता है अगर उनकी स्थिति नहीं ठीक रहती है तो व्यक्ति को कई तरह की परेशानियां आती हैं ऐसी स्थिति में उन्हें कुछ उपाय अवश्य करनी चाहिए.
राहु को ऐसे करें मजबूत
पंडित कल्कि राम बताते हैं कि अगर आपको राहु से परेशान हैं, तो इसके लिए चंदन घिसकर अपने माथे पर लगाना चाहिए. इसके साथ ही किसी विशेषज्ञ को अपनी जन्मपत्री दिखाएं और उसके अनुसार रत्न धारण करें. इस स्थिति में गोमेद रत्न धारण करना भी शुभ माना जाता है. इसके अलावा शनिवार को किए गए उपाय भी आपको राहु के बुरे प्रभावों से मुक्ति दिला सकते हैं. जातकों को शनिवार के दिन व्रत रखना चाहिए और राहु के बीज मंत्र का जाप करना चाहिए. इस दौरान पूजा में नीले फूल चढ़ाना चाहिए.
ऐसे करें राहु बीज मंत्र का जाप
ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः । ॐ रां राहवे नमः ॥
पंडित कल्कि राम बताते हैं कि राहु बीज मंत्र के जाप के लिए शनिवार के दिन रुद्राक्ष या काले स्फटिक की माला का इस्तेमाल करना चाहिए. इससे आपको जल्द ही लाभ देखने को मिलेगा
केतु को मजबूत करने के उपाय
पंडित कल्कि राम बताते हैं कि केतु दोष से निजात पाने के लिए दान के रूप में कंबल, छाता, लोहा, उड़द, गर्म कपड़े, कस्तूरी, लहसुनिया आदि देना चाहिए. इसके साथ ही काले या फिर सफेद कुत्ते को अन्न खिलाना चाहिए. इसके अलावा हर शनिवार के दिन पीपल पेड़ के नीचे घी का दीपक जलाना भी सुखद लाभ देगा.
करें इस मंत्र का जाप
ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: केतवे नम: