महाभारत: युधिष्ठिर किस बात पर हुए मां कुंती से इतने नाराज कि सारी औरतों को दे दिया शाप
पांडव भाइयों में अगर किसी को सबसे शांत, स्थिर और क्रोध पर विजय पाने वाला माना गया तो वह युधिष्ठिर थे. जो हर तरह की परिस्थिति में शांत रहते थे.…
पांडव भाइयों में अगर किसी को सबसे शांत, स्थिर और क्रोध पर विजय पाने वाला माना गया तो वह युधिष्ठिर थे. जो हर तरह की परिस्थिति में शांत रहते थे. किसी पर उन्हें नाराज होते नहीं देखा गया लेकिन दो बार वह बहुत नाराज हुए. ये नाराजगी भी दूसरों के लिए नहीं बल्कि अपनों के लिए थी. एक बार वह अर्जुन पर खासे क्रोधित हुए थे. जब महाभारत का युद्ध खत्म हुआ तो उन्हें कुछ ऐसा पता चला कि वह अपनी मां कुंती पर इतने नाराज हुए कि उन्हें माफ नहीं कर पाए.
युधिष्ठिर की बात जब भी महाभारत में की जाती है तो एक ऐसे सज्जन पुरुष की छवि उभरती है जो हर किसी को माफ कर देता है. खुद पर होने वाले तमाम अत्याचार को चुपचाप बर्दाश्त कर लेता है. अपने भाइयों और मां के लिए हमेशा एक आदर्श बड़ा भाई और बेटा बना रहता है. जो सबकी केयर करता है. कभी किसी को भूलकर भी अप्रिय बात नहीं करता.
वह ऐसे शख्स भी थे, जो खुद सबसे पीछे रखकर अपने भाइयों और दूसरों को आगे रखते थे. उन्हें त्याग की प्रतिमूर्ति माना गया. फिर ऐसा क्या हो गया कि जिस मां को वह हमेशा पूजते थे, उनसे ऐसे नाराज हुए कि कभी माफ नहीं कर पाए. उन्होंने कभी किसी को अप्रिय वचन नहीं कहे थे लेकिन उस दिन अपनी मां को खूब खरी-खोटी सुनाई. इस पर उनका गुस्सा जब शांत नहीं हुआ तो उन्होंने पूरी स्त्री जाति को भी शाप दे दिया.
युधिष्ठिर क्रोध से बेचैन और विचलित हो गए
अब जानते हैं कि आखिर बात क्या थी, जिसने युधिष्ठिर जैसे धर्मात्मा को विचलित कर दिया. वह अंदर तक क्रोध से बेचैन हो गये. जब महाभारत का युद्ध खत्म हो गया तो युद्ध भूमि में मारे गए सभी योद्धाओं की चिताएं सजाई गईं. उनके परिजनों ने चिताओं को अग्नि दी. उसके बाद उन्हें गंगा तट पर तर्पण दिया गया.
ऐसा तब हुआ जबकि कुंती ने एक भेद खोला
सभी लोग दुखी थे. ऐसे मौके पर कुंती अपने दुख को लाख कोशिश करके भी संभाल नहीं पाईं. उन्होंने पहली बार पांडवों के सामने ये भेद खोला कि अर्जुन ने जिनका वध किया, जिसे तुम लोग सूतपुत्र समझते रहे, उस महाधर्नुधर और वीर कर्ण के लिए तुम लोग तर्पण करो. वो तुम सभी के बड़े भाई थे.
सभी पांडव कुंती के इस भेद को सुनकर स्तब्ध रह गए
कर्ण का ये रहस्य सुनकर सभी पांडव स्तब्ध रह गए. दुखी भी हुए. हैरान और क्षुब्ध भी हुए कि उन्हें अब तक ये बात कभी उनकी मां कुंती ने क्यों नहीं बताई. क्यों उन्होंने उनके बाल्यकाल से लेकर अब तक ये बात छिपाकर रखी. युद्ध के दौरान भी कभी ये नहीं बताया. वह इस बात से भी दुखी थे कि कर्ण को खुद उन्हीं लोगों ने युद्ध में मारा. वह नाराज भी थे लेकिन उस समय उन्होंने चुपचाप तर्पण किया. उससे उन्होंने अपना गुस्सा दबाकर रखा.
युधिष्ठिर तमतमाए हुए थे, मां से नाराज
जब सबकुछ हो गया. सभी महल पहुंचे तो युधिष्ठिर तमतमाए हुए थे. उनके क्रोध का शिकार मां कुंती थीं. उन्होंने कहा कि अब महाभारत की जीत भी मुझको हमारी पराजय की तरह ही लग रही है. कर्ण हमारे भाई थे लेकिन हम इस बात को जानते ही नहीं थे. कर्ण तो ये बात जानते थे, क्योंकि उनके सामने ये रहस्य खुद मां कुंती ने खोल दिया लेकिन हमारे सामने नहीं खोला, इसी वजह से कर्ण ने हममे से किसी को नहीं मारा.
मां से पूछा – आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया
युधिष्ठिर ने कहा कि मैं कर्ण से इसलिए नाराज रहता था कि उन्होंने द्यूतसभा में हमें कटुवचन कहे थे. द्रौपदी का अपमान किया था. मैं तब उनसे नाराज हुआ लेकिन अब नहीं हूं. अब मैं अपनी मां से नाराज हूं कि उन्होंने ये बात क्यों हम लोगों से छिपाई. उन्होंने कटु वचन में मां कुंती से पूछा-आखिर ये बात उन्होंने क्यों पांडव भाइयों से छिपाई.
कुंती ने लाख सफाई दी लेकिन …
तब कुंती कातर होकर बोलीं, युधिष्ठिर मैने कर्ण के पास जाकर प्रार्थना की थी. उनके पिता सूर्य भी चाहते थे कि कर्ण का राज तुम लोगों को पता लग जाए लेकिन कर्ण खुद बिल्कुल ऐसा नहीं चाहते थे, इसी वजह से तुम लोगों का मिलन नहीं हो सका. इसके बाद भी रुष्ट युधिष्ठिर ने कहा, कर्ण का परिचय गोपनीय रखकर आपने मुझे ऐसा कष्ट दिया जो आप कभी समझ नहीं पाएंगी.
तब युधिष्ठिर शाप दे दिया
इसके बाद दुखी और नाराज युधिष्ठिर ने जीवन में पहली बार मां कुंती के बहाने पूरी स्त्री जाति को भी शाप दे दिया, स्त्री जाति कुछ भी गोपनीय नहीं रख पाएगी. बाद में भी युधिष्ठिर लंबे समय तक इस बात को लेकर पश्चाताप करते रहे. इस बात को उन्होंने हमेशा मन में रखा कि क्यों उनकी मां ने कर्ण का राज उन लोगों के सामने जाहिर नहीं होने दिया.
युधिष्ठिर का मानना था कि यदि कुंती ने यह रहस्य नहीं रखा होता तो युद्ध टल सकता था. लाखों लोगों की जान बच सकती थी.
कुंती ने किशोरावस्था में ही गुप्त रूप से कर्ण को जन्म दे दिया था. विवाह-पूर्व गर्भधारण के कारण सामाजिक आक्रोश से बचने के लिए उन्होंने कर्ण को जन्म देते ही उसे गंगा नदी में एक टोकरी में छोड़ दिया था.
कर्ण को नदी में बहते हुए महाराज धृष्टराज के सारथी अधिरथ और उनकी पत्नी राधा ने देखा. उन्होंने उसे गोद ले लिया. उसका लालन-पालन किया. कर्ण को वासुसेन नाम दिया गया. अपनी पालनकर्ता माता के नाम पर उन्हें राधेय के नाम से भी जाना जाने लगा.