गया धाम में पिंडदान करने से 101 कुल और 7 गोत्र का उद्धार, भगवान राम से जुड़ा है इतिहास
पूर्वजों को मोक्ष दिलाने का महापर्व पितृपक्ष मेला 17 सितंबर से शुरू हो जाएगी जो 2 अक्टूबर तक चलेगी. पितृपक्ष में पिंडदान देश के कई स्थानों पर किया जाता है,…
पूर्वजों को मोक्ष दिलाने का महापर्व पितृपक्ष मेला 17 सितंबर से शुरू हो जाएगी जो 2 अक्टूबर तक चलेगी. पितृपक्ष में पिंडदान देश के कई स्थानों पर किया जाता है, लेकिन बिहार के गया में पिंडदान का एक अलग ही महत्व है. ऐसा माना जाता है कि गया धाम में पिंडदान करने से 101 कुल और 7 गोत्र का उद्धार होता है. गया में किए गए पिंडदान का गुणगान भगवान राम ने भी किया है.
भगवान राम ने अपने पिता दशरथ का पिंडदान किया था तब से यह स्थान पितरों की तृप्ति के लिए सर्वोच्च माना जाता है. गरुड़ पुराण के अनुसार यदि इस स्थान पर पिंडदान किया जाए तो पितरों को स्वर्ग मिलता है. स्वयं श्रीहरि भगवान विष्णु यहां पितृ देवता के रूप में मौजूद हैं इसलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहा जाता है.
पंडित राजा आचार्य बताते हैं कि गया जी में पिंडदान का विशेष महत्व है. हर साल यहां लाखों की संख्या में लोग अपने पूर्वजों का पिंडदान करने आते हैं. मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से मृत आत्मा को स्वर्ग की प्राप्ति होती है. साथ ही उसकी आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
वैसे तो पूरे साल गयाजी में पिंडदान किया जाता है लेकिन पितरों के लिए विशेष पक्ष यानि पितृपक्ष के दौरान पिंडदान करने का अलग महत्व शास्त्रों में बताया गया है. पितृपक्ष प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अनन्त चतुदर्शी के दिन से प्रारम्भ होता है जो अश्विन मास की आमावस्या तिथि को समाप्त होता है.
मान्यता है कि फल्गु नदी के तट पर पिंडदान एवं तर्पण करने से पितरों को सबसे उत्तम गति के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है एवं माता-पिता समेत कुल की सात पीढ़ियों का उद्धार होता है. साथ ही पिंडदानकर्ता स्वयं भी परमगति को प्राप्त करते हैं.
फल्गु नदी के जल का महत्व इतना ज्यादा है कि ऐसी मान्यता है कि नदी में पांव पड़ने से उड़ने वाले पानी की छिंटे मात्र से भी पूर्वजों की आत्मा की मुक्ति हो जाती है. पैर के स्पर्श से उड़ने वाली पानी की छिंटे को भी पवित्र मानकर पूर्वजों की आत्मा इस छिंटे को भी ग्रहण कर लेती है.
गया जी में पिंडदान पूरे साल किया जा सकता है लेकिन गया श्राद्ध या गया पिंडदान शुभ 17 दिन पितृपक्ष मेला या 7 दिन, 5 दिन, 3 दिन, 1 दिन या कृष्ण पक्ष के साथ किसी भी महीने में अमावस्या करना बेहतर है. 17 दिनों का पितृपक्ष श्राद्ध या पितृपक्ष मेला, दिवंगत पूर्वजों या परिवार के किसी भी दिवंगत सदस्य को अर्पण करने के लिए सबसे शुभ दिन माना जाता है.
इस वर्ष पितृपक्ष 17 सितंबर से शुरू हो रही है जो 2 अक्टूबर तक रहेगी. गया में पिंडदान करने से चार गुना पुण्य मिलने की मान्यता है क्योंकि यह स्थान भगवान विष्णु और माता सीता से जुड़ा हुआ है. यहां की ऊर्जा और दिव्यता से पिंडदान का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है.