पंडित नेहरू के दौर से लेटरल एंट्री से बनाए जा रहे हैं अधिकारी, अब क्यों कांग्रेस कर रही है विरोध…
मंत्रालयों के शीर्ष पदों पर लेटरल एंट्री के जरिए अधिकारियों की भर्ती को लेकर विपक्ष ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कांग्रेस समेत विपक्षी दलों का कहना है…
मंत्रालयों के शीर्ष पदों पर लेटरल एंट्री के जरिए अधिकारियों की भर्ती को लेकर विपक्ष ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
कांग्रेस समेत विपक्षी दलों का कहना है कि मोदी सरकार आरक्षण खत्म करने की साजिश कर रही है।
यूपीएससी ने हाल ही में उप सचिव, संयुक्त सचिव और निदेशकों के 45 पदों पर सीधी भर्ती का विज्ञापन जारी किया है।
इसको लेकर जब विपक्ष ने सरकार को घेरना शुरू किया गया तो सरकार ने भी करारा जवाब दिया और कहा कि इसकी शुरुआत तो यूपीए सरकार ने ही की थी।
केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने सोमवार को कहा कि नेता प्रतिपक्ष बिना सोचे-समझे कुछ भी बोलते चले जा रहे हैं जबकि कांग्रेस ने मोंटेक सिंह अहलूवालिया को योजना आयोग का उपाध्यक्ष लेटरल एंट्री के जरिए ही बनाया था। वहीं 1976 में मनमोहन सिंह को भी सीधी भर्ती के जरिए वित्त सचिव बनाया गया था।
अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1961 में काका साहेब कालेकर की रिपोर्ट के आधार पर ओबीसी रिजर्वेशन का विरोध किया था।
इसके बाद राजीव गांधी ने भी विरोध किया। उन्होंने सोनिया गांधी को राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के प्रमुख बनाने पर भी सवाल खड़े किए।
बता दें कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के दौर से ही समय-समय पर अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों को शीर्ष पदों पर बैठाया गया है।
1950 से ही हो रही सीधी भर्ती
सीधी भर्ती की बात करें तो 1950 से अब तक आईजी पटेल, डॉ. मनमोहन सिंह, वी कृष्णमूर्ती, मोंटेक सिंह अहलूवालिया और आरवी शाही जैसे कई नाम हैं जिन्हें लेटरल एंट्री के जरिए बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
हालांकि सीनियर पदों पर ही ये भर्तियां की गई थीं। सरकार को जब आर्थिक जानकारों की जरूरत हुई तो विजय केलकर, बिमल जालान और राकेश मोहन जैसे लोगों को जिम्मेदारी दी गई।
हाल ही में यूपीएससी की तरफ से जारी विज्ञापन में भी ऐसे सेक्टरों में भर्ती का ऐलान किया गया है जो कि फिलहाल सिविल सर्विस के सेटअप में नहीं हैं।
1959 में पंडित नेहरू ने की थीं भर्तियां
पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1959 में ही इंडस्ट्रियल मैनेजमेंट पूल की शुरुआत की थी जिसमें मंटोश सोढ़ी जैसे लोगों को सरकार में शामिल किया गया था।
बाद में उन्हें भारी उद्योग का सचिव बना दिया गया। इसी कड़ी में दूसरा नाम वी कृष्णामूर्ती का था जिन्होंने BHEL, SAIL और पीएसयू की जिम्मेदारी संभाली। इसी तरह डीवी कपूर ने तीन अहम मंत्रालयों का कार्यभार संभाला। इसमें ऊर्जा, भारी उद्योग और रसायन और पेट्रोकेमिकल विभाग शामिल था।
आर्थव्यवस्था सुधारने के लिए हुईं सीधी भर्तियां
1954 में आईजी पटेल को आर्थिक सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया था। इसके बाद उन्हें वित्त विभाग का सचिव बना दिया गया।
बाद में वह आरबीआई के गवर्नर भी बने। इसी तरह 1971 में पूर्व पीएम मनमोहन सिंह को आर्थिक सलाहकार के रूप में भर्ती किया गया था।
उन्हें पहले वाणिज्य मंत्रालय में जिम्मेदारी दी गई और इसके बाद कई पदों पर रहे। जनता सरकार के दौरान भी रेलवे इंजीनियर एम मेनेजेस को डिफेंस प्रोडक्शन का सचिव बनाया गया था।
राजीव गांधी की सरकार में भती हुई थी सीधी भर्ती
केरल इलेक्ट्रॉनिक्स डिवेलपमेंट कॉर्पोरेशन के चेयरमैन केपीपी नांबियार को राजीव गांधी की सरकार में इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्रेटरी बनाया गया था।
इसके अलावा सैम पित्रोदा को भी सेंटर फॉर डिवेलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स की जिम्मेदारी दी गई थी। वहीं 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में आरवी शाही को प्राइवेट सेक्टर से लाकर ऊर्जा मंत्रालय में सचिव बना दिया गया। इस क्षेत्र में सुधार के लिए उन्हें लाया गया था।
80 और 90 के दशक में कई आर्थिक जानकार सरकार में सीधे आए और उन्हें संयुक्त सचिव बनाया गया। बाद में वे सचिव के पद तक गए।
मोदी सरकार ने 2018 में लेटरल एंट्री को व्यवस्थित करने का प्रयास किया और बड़ी संख्या में भर्ती के लिए रणनीति तैयार की। मोदी सरकार का कहना था कि बहुत सारे आईएएस अधिकारी केंद्र में नहीं आना चाहते।
ऐसे में बड़े सुधारों के लिए प्रतिभाओं की जरूरत है। ऐसे में जिन लोगों ने अपने-अपने क्षेत्र में अच्छा काम किया है वे सरकार की भी मदद कर सकते हैं।
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