भारत को आंख दिखाने वाले के करीब कैसे पहुंच गए पुतिन 

नई दिल्ली। रुस पिछले करीब दो सालों से यूक्रेन से युद्ध लड रहा है, लेकिन उसे सफलता मिलने की बजाय अपनी खुद की जमीन बचाना अब भारी महसूस हो रहा…

भारत को आंख दिखाने वाले के करीब कैसे पहुंच गए पुतिन 

नई दिल्ली। रुस पिछले करीब दो सालों से यूक्रेन से युद्ध लड रहा है, लेकिन उसे सफलता मिलने की बजाय अपनी खुद की जमीन बचाना अब भारी महसूस हो रहा है। इसके चलते ही रुस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने भारत विरोधी और धमकाने वाले देश अजरबैजान की ओर रुख किया है। नाटो के मामले में अजरबैजान भी रुस का बहुत साथ नहीं दे पाएगा। यूक्रेन की सेना रुस के अंदर कुर्स्क तक झंडा पहराने पहुंच गई है, इससे अमेरिका भी गदगद है।  
गौरतलब है कि यूक्रेन के खिलाफ रुस ने पिछले दो साल से जंग छेड़ रखी है। बावजूद इसके कि रूस को कोई सफलता हाथ लगती उल्टा इस वक्त सबसे मुश्किल स्थिति में रुस दिख रहा है। यूक्रेन की सेना रूस के अंदर कुर्स्क तक घुस चुकी है। यही वजह है कि अब यूक्रेन पर चढ़ाई करके दोनेस्क और लुहांस्क पर आसान कब्जा करने का सपना दखने वाले रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अजरबैजान का रुख किया है। अब यूक्रेन की सेना के आक्रमण के लिए राष्ट्रपति पुतिन नाटो को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं और उसे तगड़ा जवाब देने का दावा भी कर रहे हैं। इसी कोशिश के चलते वो नए देशों को भी अपनी मुहिम में साथ लाने की कोशिश में जुटे हुए नजर आते हैं। इस आड़े वक्त में रुस अब भारत को धमकाने और डराने वाले अजरबैजान के पास चला गया है। रुस की मीडिया रिपोर्ट बताती है कि राष्ट्रपति पुतिन दो दिवसीय राजकीय यात्रा पर अजरबैजान की राजधानी बाकू गए हैं। राष्ट्रपति पुतिन का अजरबैजान दौरा इसलिए भी अहम है क्योंकि यह देश रूस और तुर्की का खास तो है ही, लेकिन साथ ही पश्चिमी देशों में बड़ी मात्रा में एनर्जी सप्लाई करने के लिए भी जाना जाता है। ऐसे में रुस के राष्ट्रपति अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव से मुलाकात कर पश्चिमी देशों की एनर्जी सप्लाई रोकने के लिए तैयार कर सकते हैं। 
क्रेमलिन के बयान की बात करें तो इसमें कहा गया है कि रूस और अज़रबैजान के बीच सामरिक साझेदारी और आपसी संबंधों को प्रगाढ़ बनाने के साथ ही साथ मौजूदा अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा के लिए बातचीत का एजेंडा तय किया गया है। इसलिए इस यात्रा के दौरान अनेक समझौतों पर हस्ताक्षर किए जा सकते हैं। इसके बाद ही दोनों देशों के राष्ट्रपति एक संयुक्त बयान भी जारी कर एकजुटता का सबूत दे सकते हैं। यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि अजरबैजान ने अर्मेनिया मामले में भारत को चेतावनी देते हुए लगभग धमकाने का काम किया था, ऐसे में रुस का उसके करीब जाना अनेक मायने में अहम हो गया है।