श्रीनगर के पांच मंदिर और एक धर्मशाला पर जिला प्रशासन का कब्जा

श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने एक अहम सुनाया। इस फैसले में श्रीनगर के बजरंग देव धर्मदास जी मंदिर, बाबा धर्मदास राम जीवनदास ट्रस्ट सत्तू बरबर शाह, बाबा धर्मदास रामजीवन…

श्रीनगर के पांच मंदिर और एक धर्मशाला पर जिला प्रशासन का कब्जा

श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने एक अहम सुनाया। इस फैसले में श्रीनगर के बजरंग देव धर्मदास जी मंदिर, बाबा धर्मदास राम जीवनदास ट्रस्ट सत्तू बरबर शाह, बाबा धर्मदास रामजीवन दास ट्रस्ट सत्तू बरबर शाह मंदिर विशंभर नगर सहित दो अन्य मंदिरों का प्रबंधन जिला प्रशासन को सौंपने का आदेश दिया है। इसके साथ ही बारामुला के क्रीरी में स्थित एक धर्मशाला की संपत्ति को भी जिला प्रशासन से अपने नियंत्रण में लेने को कोर्ट ने कहा है।
श्रीनगर के बजरंग देव धर्मदास जी मंदिर की परिसंपत्ति विवाद से जुड़ी एक याचिका का निपटारा करते हुए, न्यायमूर्ति संजीव कुमार और एमए चौधरी की बेंच ने श्रीनगर के उपायुक्त को आदेश दिया कि वह राजस्व और अन्य विभागों के अधिकारियों की एक समिति का गठन करें जो इन मंदिरों में पूजा और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों की व्यवस्था करे। कोर्ट ने कहा कि निर्विवाद रूप से, मंदिर की संपत्ति देवता में निहित है और इसलिए इस याचिका का कोई भी पक्ष या कोई अन्य दावा नहीं कर सकता। 
कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके आधार पर यह कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंच सके कि यह संपत्ति मंदिर को समर्पित की गई। कोर्ट ने कहा कि किसी विशिष्ट रिकॉर्ड के अभाव में यह माना जाना चाहिए कि उस समय के महाराजा ने मंदिरों का निर्माण करवाया और उन्हें भूमि संपत्ति समर्पित की ताकि ऐसी संपत्तियों से अर्जित आय का इस्तेमाल मंदिरों के रख रखाव और धर्मार्थ के उद्देश्य के लिए किया जा सके।
कोर्ट ने निर्देश दिया कि मंदिर या उसकी संपत्तियों के संबंध में सभी लंबित सिविल मुकदमों में, सिविल अदालत डिप्टी कमिश्नर, जिला मजिस्ट्रेट को पार्टी प्रतिवादी के रूप में रखेगी ताकि पार्टियों के बीच मिलीभगत से बचा जा सके। उन्होंने कहा कि यह स्थिति तब तक जारी रहेगी जब तक पार्टियों के अधिकारों को सिविल कोर्ट द्वारा निर्णायक रूप से निर्धारित नहीं किया जाता है या केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की सरकार सभी धर्मार्थ और धार्मिक संस्थानों और बंदोबस्ती के लिए एक उचित कानून नहीं बना लेती है। कोर्ट ने कहा ऐसा पाया गया कि 1990 के बाद आतंकवाद के चलते मंदिर की संपत्तियों की बड़े पैमाने पर लूट हुई। तथाकथित महंतों और बाबाओं ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर इन संपत्तियों पर अतिक्रमण कर लिया है।