बांग्लादेश के जिस मंदिर में मुसलमानों ने किया था इफ्तार, क्या उसे ही जला कर किया खाक?…

सोशल मीडिया पर एक तस्वीर तेजी से वायरल हो रही है। जिसमें सफेद कपड़ों में एक हिंदू पुजारी मुसलमानों को भोजन परोसते हुए दिखाई दे रहा है। दावा किया जा…

बांग्लादेश के जिस मंदिर में मुसलमानों ने किया था इफ्तार, क्या उसे ही जला कर किया खाक?…

सोशल मीडिया पर एक तस्वीर तेजी से वायरल हो रही है।

जिसमें सफेद कपड़ों में एक हिंदू पुजारी मुसलमानों को भोजन परोसते हुए दिखाई दे रहा है। दावा किया जा रहा है कि यह तस्वीर बांग्लादेश के एक इस्कॉन मंदिर में आयोजित इफ्तार की है, जिसे हाल ही में प्रदर्शनकारियों ने आग के हवाले कर दिया।

सोशल मीडिया पर वायरल इस तस्वीर के कैप्शन में लिखा है, “कुछ दिन पहले ही बांग्लादेश इस्कॉन मंदिर ने ईद पर मुसलमानों को मंदिरों में खिलाया, आज उन्हीं मुसलमानों ने वही इस्कॉन मंदिर जला कर खाक कर दिया है।”

हालांकि, यह सच है कि हाल ही में बांग्लादेश के मेहरपुर में एक इस्कॉन मंदिर में आग लगाई गई थी, लेकिन वायरल हो रही तस्वीर का उस घटना से कोई संबंध नहीं है।

जब इस तस्वीर की सच्चाई जांची गई तो पता चला कि यह तस्वीर वास्तव में पश्चिम बंगाल के मायापुर में स्थित इस्कॉन मंदिर में 2016 में आयोजित एक इफ्तार समारोह की है। यह तस्वीर सबसे पहले 4 जुलाई 2016 को UCANews के एक लेख में प्रकाशित हुई थी।

इस लेख में तस्वीर के साथ कैप्शन में लिखा था, “मायापुर के इस्कॉन मंदिर में 22 जून को इफ्तार के दौरान इस्कॉन के एक साधु मुसलमानों को मिठाई परोस रहे हैं।” इस तस्वीर का उपयोग अब सोशल मीडिया पर फैला कर झूठा दावा किया जा रहा है।

इस्कॉन इंडिया के कम्युनिकेशन डायरेक्टर, युधिष्ठिर गोविंद दास ने भी पुष्टि की कि यह तस्वीर पश्चिम बंगाल के मायापुर में ली गई थी और इसका बांग्लादेश में हो रही मौजूदा अशांति से कोई संबंध नहीं है।

क्यों मचा बांग्लादेश में बवाल?
बांग्लादेश में हाल ही में स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए 30 प्रतिशत नौकरी कोटा बहाल करने के उच्च न्यायालय के आदेश ने देश में गंभीर तनाव पैदा कर दिया है।

बता दें 170 मिलियन की जनसंख्या वाले इस देश में लगभग 32 मिलियन युवा बेरोजगार हैं। छात्रों ने स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों के लिए इस कोटा को समाप्त करने की मांग की है और इसके खिलाफ व्यापक विरोध किया।

प्रधानमंत्री शेख हसीना ने छात्रों की इस मांग को पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया और चल रही अदालती कार्यवाही का हवाला देते हुए विरोध प्रदर्शन करने वाले छात्रों को ‘रजाकार’ करार दिया।

उल्लेखनीय है कि ‘रजाकार’ उन लोगों को कहा जाता था जिन्होंने 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना के साथ सहयोग किया था। उनकी टिप्पणियों ने विरोध प्रदर्शन को और उकसाया, जिससे ढाका विश्वविद्यालय में हजारों छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया।

इस तनाव ने देशभर में घातक और व्यापक नागरिक अशांति को जन्म दिया, जिसमें 120 से अधिक लोगों की जान चली गई। बांग्लादेश की शीर्ष अदालत ने अंततः नौकरी के आवेदकों के लिए विवादास्पद कोटा प्रणाली को वापस ले लिया, लेकिन इसे पूरी तरह से समाप्त नहीं किया।

वहीं प्रधानमंत्री हसीना ने विरोध प्रदर्शन को आतंकवादी गतिविधि करार देते हुए इन तत्वों को सख्ती से दबाने का निर्देश दिया। बांग्लादेशी मीडिया के मुताबिक, शेख हसीना ने एक सुरक्षा मामलों की राष्ट्रीय समिति की बैठक भी बुलाई।

जिसमें सेना, नौसेना, वायु सेना, पुलिस, आरएबी, बीजीबी और अन्य शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों ने भाग लिया। बांग्लादेशी सरकार के इस रुख को देखते हुए प्रदर्शनकारियों के अंदर गुस्सा और भड़का दिया, जिसका नतीजा बांग्लादेश के मौजूदा हालात हैं।

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