सनातन धर्म में सीधे हाथ का महत्व, सिर्फ इस देवी की पूजा बायें हाथ से होती है,

सनातन धर्म में बाएं हाथ से कोई काम अच्छा नहीं माना जाता. हिंदू धर्म में सीधे हाथ से ही पूजा पाठ और अन्य महत्वपूर्ण काम होते हैं. लेकिन इस धरा…

सनातन धर्म में सीधे हाथ का महत्व, सिर्फ इस देवी की पूजा बायें हाथ से होती है,

सनातन धर्म में बाएं हाथ से कोई काम अच्छा नहीं माना जाता. हिंदू धर्म में सीधे हाथ से ही पूजा पाठ और अन्य महत्वपूर्ण काम होते हैं. लेकिन इस धरा पर एक ऐसी देवी हैं जिनकी पूजा बाएं हाथ से की जाती है. इसके पीछे की कई कहानी है. आज हम उस कहानी के बारे में ही चर्चा करेंगे कि इस देवी को आखिर बाएं हाथ से क्यों पूजा जाता है.

हम बात कर रहे हैं मां बिहुला विषहरी की जिन्हें बाएं हाथ से पूजा जाता है. आप जब भी कभी माता विषहरी के दरबार जाएंगे वहां के पुजारी बाएं हाथ से पूजा करते नजर आएंगे.

ये है कहानी
मां बिहुला पर किताब लिख रहे आलोक कुमार से इस बारे में बात की तो उन्होंने बताया. कहते हैं नागवंश को पूजित करने के लिए मां विषहरी को अपनी शक्ति लगानी पड़ी थी. चंपानगर में चांदो सौदागर नाम का एक बहुत बड़ा व्यापारी हुआ करता था. उसके कपड़े का व्यवसाय देश के साथ-साथ विदेशों में भी था. ऐसा कहा जाता था उनकी नाव इतनी बड़ी थी जिसमें 580 मल्लाह सवार होते थे. चांदो सौदागर शिव भक्त थे. जब मां विषहरी इस धरती पर अपनी पूजा के लिए पिता भगवान शिव के पास गईं तो उन्होंने कहा अगर तुम्हारी पूजा मेरा परम भक्त चांदो सौदागर करेगा तो इस धरती पर तुम पूजनीय हो जाओगी, यही नहीं पूरी नाग प्रजाति पूजनीय हो जाएगी.

चांदो सौदागर का हठ
शिव की बात सुनते ही मां विषहरी सौदागर के पास पहुंचीं और उनसे अपना पूजा करने के लिए आग्रह किया. सौदागर ने कहा मैं भगवान शिव का अनन्य भक्त हूं मैं उनकी ही पूजा करूंगा. मैं आपकी पूजा नहीं कर सकता. लाख प्रयत्न करने के बाद भी सौदागर तैयार नहीं हुए. तब मां विषहरी ने गुस्से में कहा अगर तुम मेरी पूजा नहीं करोगे तो मैं तुम्हारे वंश को नष्ट कर दूंगी. इसके बावजूदसौदागर अपने वचन पर अटल रहा और उसने पूजा नहीं करने की मन में ठान ली.

7 पुत्रों का वध
इसके बाद मां विषहरी ने अपने क्रोध से चांदो सौदागर के छह पुत्रों को त्रिवेणी नदी में डुबाकर मार डाला. इसके बावजूद सौदागर ने तनिक भी ना घबराते हुए पूजा करने से फिर मना कर दिया. इसके बाद सौदागर को सातवां पुत्र हुआ. विषहरी ने उस पुत्र को भी मारने का भय दिखाया.सौदागर टस से मस नहीं हुआ. सातवें पुत्र को भी मां विषहरी ने नाराज होकर मरवा दिया. उसके बाद उसकी पत्नी और बहू के लाख प्रयत्न के बाद चांदो सौदागर पूजा के लिए जैसे तैसे राजी हो गया. लेकिन उसने कहा ठीक है मैं तुम्हारी पूजा दाएं हाथ से नहीं कर सकता हूं. मैं तुम्हारी पूजा बाए हाथ से करूंगा. मां विषहरी प्रसन्न हो गयीं. बोलीं ठीक है तुम मेरी पूजा बाएं हाथ से ही करो. तब से विषहरी की पूजा बाएं हाथ से होने लगी. अभी भी मंदिर में बाएं हाथ से पूजा की जाती है.