जलवायु परिवर्तन के कारण घट रहे हैं प्रॉपर्टी के दाम…
जलवायु परिवर्तन के कारण प्रॉपर्टी के दाम इतने ज्यादा घट सकते हैं कि अरबों डॉलर का सफाया हो जाए। इसका आम लोगों और अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर हो सकता…
जलवायु परिवर्तन के कारण प्रॉपर्टी के दाम इतने ज्यादा घट सकते हैं कि अरबों डॉलर का सफाया हो जाए।
इसका आम लोगों और अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर हो सकता है, ऑस्ट्रेलिया के एक कस्बे लिजमोर में दो साल पहले जब बाढ़ आई तो एंटीक स्टोर चलाने वाले एडम बेली को खासा नुकसान हुआ।
उनकी दुकान का काफी सामान खराब हो गया जिनमें कई दुर्लभ और प्राचीन चीजें थीं, मसलन पहले विश्व युद्ध की तस्वीरें। वह पूरा अनुभव इतना दर्दनाक था कि अब भी अगर रात को बारिश होती है तो बेली सो नहीं पाते।
अपनी नई दुकान का बीमा करवाने के लिए उन्हें 80 हजार ऑस्ट्रेलियाई डॉलर यानी लगभग 45 लाख रुपये की जरूरत है। लेकिन उनके पास इतना धन नहीं है।
1988 से लिजमोर में रह रहे बेली कहते हैं, “मेरे पास किसी तरह का बीमा नहीं है और अगर फिर से बाढ़ आई तो मेरे लिए उसका मतलब होगा, पूरी तरह बर्बादी बात सिर्फ बीमे की नहीं है। उनकी प्रॉपर्टी की कीमत भी गिर चुकी है।
कीमतों में भारी गिरावट 44 हजार की आबादी वाले लिजमोर कस्बे में दो साल पहले आई बाढ़ के बाद प्रॉपर्टी की कीमतें 30 फीसदी तक गिर चुकी हैं।
जलवायु परिवर्तन किस तरह प्रॉपर्टी की कीमतों को प्रभावित कर रहा है, लिजमोर उसकी एक मिसाल है। दिल्ली कभी तप रही है, कभी डूब रही है, ऐसा क्यों हो रहा है? नीति निर्माता, शोधकर्ता और प्रॉपर्टी बाजार के विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में जो लोग प्रॉपर्टी खरीद रहे हैं, वे जलवायु परिवर्तन के खतरों को ध्यान में नहीं रख रहे हैं।
अपने खूबसूरत समुद्र तटों के लिए मशहूर इन देशों में बीच के करीब रहना बहुत से लोगों की ख्वाहिश होती है लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ता समुद्री जल स्तर इस ख्वाहिश को एक बुरे सपने में बदल सकता है।
हो सकता है अरबों का नुकसान जलवायु परिवर्तन के खतरों पर अध्ययन करने वाली संस्था क्रॉस डिपेंडेंसी इनिशिएटिव (एक्सडीआई) के आंकड़े कहते हैं कि कुदरती आपदाओं के कारण 2030 ऑस्ट्रेलिया के प्रॉपर्टी बाजार से लगभग 800 अरब डॉलर यानी लगभग 6,681 खरब रुपये का सफाया हो जाएगा।
यह कुल कीमत का 6.7 फीसदी है। क्लाइमेट सिग्मा नामक संगठन के मुताबिक न्यूजीलैंड में लगभग 20 फीसदी घर ऐसी जगहों पर हैं जहां बाढ़ का खतरा बना रहता है।
एक्सडीआई में विज्ञान और तकनीक निदेशक कार्ल मैलन कहते हैं, “क्या अर्थव्यवस्था इसे झेल सकती है? शायद। क्या कुछ समुदायों को अन्यों के मुकाबले ज्यादा पीड़ा से गुजरना होगा? हां।
यानी, इसका समुदायों पर बहुत गहरा असर हो सकता है। जब आपदाएं आती हैं तो वे उद्योगों और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती हैं।
पूरी दुनिया में असर जलवायु परिवर्तन दुनियाभर के प्रॉपर्टी बाजार के लिए खतरा बनता जा रहा है।
2023 में नेचर क्लाइमेट चेंज पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया कि अमेरिका के तटीय शहरों में प्रॉपर्टी 121 अरब डॉलर से 237 अरब डॉलर तक ज्यादा महंगी हैं क्योंकि वहां बाढ़ के खतरों को दाम में नहीं गिना गया है।
यानी, इन संपत्तियों के दाम इस हद तक गिर सकते हैं। इससे पहले 2022 में एक रिसर्च कंपनी मिलीमैन ने एक अध्ययन में बताया था कि राष्ट्रीय स्तर पर प्रॉपर्टी की कीमतों में 520 अरब डॉलर की गिरावट आ सकती है।
इस अध्ययन में कहा गया कि लगभग 35 लाख लोग ऐसे हैं जिनके घरों की कीमतें जलवायु परिवर्तन के कारण 10 फीसदी तक घट सकती हैं.
विशेषज्ञ इसे प्रॉपर्टी बाजार के क्लाइमेट बबल का नाम देते हैं। भारत में भी प्रॉपर्टी खरीदने वालों को इस बारे में जागरूक किया जा रहा है।
टाइम्सप्रॉपर्टीपत्रिका में प्रकाशित एक लेख में कहा गया, “जलवायु परिवर्तन के खतरों को ध्यान में रखते हुए सुरक्षित रुख अपनाने से प्रॉप्रटी खरीदते हुए आप सही सूचनाओं के आधार पर फैसले कर सकते हैं।
आपदाओं से सुरक्षित प्रॉपर्टी में निवेश करने से ना सिर्फ आपकी वित्तीय रूप से सुरक्षा होगी बल्कि आप भारत के और अपने समुदाय के लिए टिकाऊ भविष्य बनाने में भी मदद कर सकते हैं।
बीमा कराना भी महंगा प्राकृतिक आपदाओं के खतरे वाली संपत्तियों का बीमा कराना भी महंगा होता है और कई देशों में तो यह इस हद तक महंगा हो चुका है कि लोग इतना खर्चा उठा ही नहीं पा रहे हैं।
ऑस्ट्रेलिया में एक जांच के दौरान बीमा कंपनी आलियांज ऑस्ट्रेलिया ने बताया कि बाढ़ के खतरे वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में से 74 फीसदी लोगों ने बीमा नहीं कराया है।
एक साल पहले यह आंकड़ा 63 फीसदी था। यानी लोग अब बीमा कम करवा रहे हैं।लिजमोर जैसी नदी के किनारे बसी जगहों में तो 90 फीसदी लोगों के पास बीमा नहीं है।
रिजर्व बैंक ऑफ न्यूजीलैंड में वित्तीय स्थिरता निदेशक केरी वॉट बताती हैं कि जलवायु परिवर्तन के खतरों और निर्माण खर्च के बढ़ने के कारण पिछले एक दशक में बीमा प्रीमियम दोगुना हो चुका है।
वह कहती हैं, “हम यह चाहते हैं कि लोग जो प्रॉपर्टी खरीदना चाहते हैं, उसके बारे में खास खतरों को भी ध्यान में रखना शुरू करें।
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