जोर से बोलो, राम जन्मभूमि का ताला खोलो: जब सिर मुंडवा उमा भारती ने कर्फ्यू के बीच अयोध्या में मचाया था हंगामा…
इसी महीने की 22 तारीख को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने जारी है। इसे लेकर देशभर में भक्ति का माहौल है। साथ ही चार दशक पहले शुरू हुए…
इसी महीने की 22 तारीख को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने जारी है।
इसे लेकर देशभर में भक्ति का माहौल है। साथ ही चार दशक पहले शुरू हुए राम मंदिर आंदोलन की भी यादें लोगों के जेहन में कौंधने लगी हैं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री और राम जन्मभूमि आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक, भाजपा नेता उमा भारती पिछले कुछ समय से राजनीतिक गतिविधियों से दूर हैं।
वह उन नेताओं में शामिल रही हैं, जिन्होंने 12 साल की उम्र में ना सिर्फ इस आंदोलन में भाग लिया बल्कि खुद को इसके लिए समर्पित कर दिया।
जब 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद ढहाई गई थी, तब भारती वहीं मौजूद थीं। वह उन 32 लोगों में शामिल थीं, जिन्हें इस कांड में आरोपी बनाया गया था।
हालांकि, उन सभी को 2020 में सीबीआई की एक विशेष अदालत ने बरी कर दिया था। पिछले साल, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इन सभी को बरी किए जाने के खिलाफ अपील भी रद्द कर गदी थी।
12 साल की उम्र में राम मंदिर आंदोलन से जुड़ीं उमा
इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में उमा भारती ने कहा, “जब मैं 12 साल की थी, तभी धार्मिक प्रवचन देने के लिए अयोध्या गई थी।” भारती बचपन में रामायण और महाभारत पर प्रवचन दिया करती थीं।
उन्होंने बताया कि महंत रामचंद्र दास उन्हें प्रवचन देने के लिए अयोध्या ले गए थे। बकौल उमा भारती, जब उन्होंने वहां ताला लगा देखा और बाहर प्रार्थना भी होते देखा तो पूछा कि ताला क्यों लगा है। इसका जवाब सुनकर वह चिंतित हो गई थीं।
1984 में जब विश्व हिन्दू परिषद ने राम जन्मभूमि को लेकर एक आंदोलन छेड़ा, तब उमा भारती भी उसमें कूद पड़ीं। हालांकि, तब तक वह राजनीति में सक्रिय हो चुकी थीं और उनकी उम्र 25 हो चुकी थी। बकौल भारती, तब नारा लगता था, “जोर से बोलो, राम जन्मभूमि का ताला खोलो।”
जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में 1986 में रामजन्मभूमि परिसर का ताला खुला तो विश्व हिन्दू परिषद ने सितंबर 1989 में वहां शिलान्यास कार्यक्रम रखा।
उमा भारती ने उसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। इसके बाद मथुरा में एक बैठक हुई, जिसमें यह तय किया गया कि 31 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में कार सेवा की जाएगी।
उस वक्त वी.पी. सिंह प्रधान मंत्री थे। उनकी सरकार को एक तरफ वाम दल तो दूसरी तरफ बीजेपी समर्थन दे रही थी। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। मुलायम ने कह रखा था कि अयोध्या में एक परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा’।
जब उमा भारती राजमाता विजयाराजे सिंधिया के साथ कारसेवा करने अयोध्या पहुंचीं तो उन्हें हिरासत में ले लिया गया और चिनार जेल भेज दिया गया। बाद में उन्हें बांदा के एक गेस्ट हाउस में रखा गया। हालांकि, 31 अक्टूबर को कारसेवा हुई और पुलिस कार्रवाई में अशोक सिंघल घायल हो गए।
अयोध्या में कर्फ्यू लगा दिया गया था। बकौल, उमा भारती वह टीवी पर पुलिस झड़प और कार सेवकों पर हुई कार्रवाई देखकर क्षुब्ध हो गई थीं। इसके प्रतिकार में उन्होंने अपना सिर मुंडवा लिया और कुछ लोगों के साथ अयोध्या पहुंच गईं।
उनके ही साथ दो भाई राम कुमार और सोहित कुमार कोठारी भी थे, जो भीड़ और पुलिस कर्फ्यू की वजह से उनसे अलग हो गए। पुलिस ने उन दोनों भाइयों को हुमान गढ़ी के पास मार दिया था।
जब उमा भारती को उठा ले गई पुलिस
उमा भारती अयोध्या में जिस समूह का नेतृत्व कर रही थीं, उस पर लाठीचार्ज किया गया और आंसू गैस की गोलियां दागी गईं। अयोध्या छाबनी में तब्दील हो चुका था।
सुरक्षा में लगी सीआरपीएफ की महिला कर्मियों ने तब उमा भारती को उठा लिया था और ले जाकर फैजाबाद जेल में बंद कर दिया था। यह खबर जानकर अगले दिन स्थानीय महिलाओं ने जेल को घेर लिया था। इसके बाद उन्हें नैनी जेल भेज दिया गया।
अब तक राम मंदिर आंदोलन चरम पर पहुंचने लगा था। इसी बीच, अशोक सिंघल ने 6 दिसंबर 1992 को कारसेवा की घोषणा कर दी। 5 दिसंबर को अयोध्या में देशभर से भारी भीड़ जुट गई।
विवादित ढांचे से करीब आधा किलोमीटर दूर लेकिन उसके सामने एक मंच बनाया गया था। तब उमा भारती उस मंच पर सवार थीं। उसी मंच पर मुरली मनोहर जोशी, लालकृष्ण आडवाणी, राजमाता विजयाराजे सिंधिया, साध्वी ऋतंभरा भी मौजूद थीं।
आंखों के सामने ढहने लगी बाबरी
जब उमा भारती उस मंच से भीड़ को संबोधित कर रही थीं, तभी उन्होंने देखा कि कारसेवक बाबरी ढांचे पर चढ़ रहे हैं। बकौल उमा भारती, यह देखकर मैं रुक गई। मैं खड़ी थी।
उन्हें देख सकती थी। तभी मैंने सभी लोगों को इसके बारे में बताया। मंच पर बैठे आडवाणी जी ने उन्हें बुलाया लेकिन किसी को सुनाई नहीं दिया क्योंकि तब वहां ‘जय श्री राम’ के नारे खूब जोर-शोर से लग रहे थे।
उमा बताती हैं कि वह आडवणी जी के निर्देश पर पीछे के रास्ते से विवादित ढांचे की तरफ बढ़ीं। उनके साथ तब वहां तैनात एडिशनल एसपी अंजू गुप्ता, आडवाणी के सहयोगी दीपक चोपड़ा और प्रमोद महाजन भी थे।
जब वहां पहुंची तो उमा भारती को कार सेवकों ने घेर लिया और आगे जाने नहीं दिया। बकौल भारती वह अनुशासन और शांति की अपील कर रही थीं लेकिन कारसेवकों ने उन्हें उठाकर फिर से मंच पर लाकर छोड़ दिया। उधर, कार सेवकों ने विवादित ढांचा ध्वस्त कर दिया और दिल्ली की सरकार ने कल्याण सिंह की सरकार बर्खास्त कर दी।
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