भारत के पहले परमाणु परीक्षण का नाम ‘स्माइलिंग बुद्धा’ क्यों? 50 साल बाद भी रहस्य है ऑपरेशन…

बुद्ध का नाम शांति के संदेश के साथ जुड़ा है। फिर आखिर भारत के पहले परमाणु परीक्षण का नाम ‘ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा’ क्यों रखा गया। दरअसल इंदिरा गांधी सरकार में किए…

भारत के पहले परमाणु परीक्षण का नाम ‘स्माइलिंग बुद्धा’ क्यों? 50 साल बाद भी रहस्य है ऑपरेशन…

बुद्ध का नाम शांति के संदेश के साथ जुड़ा है।

फिर आखिर भारत के पहले परमाणु परीक्षण का नाम ‘ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा’ क्यों रखा गया। दरअसल इंदिरा गांधी सरकार में किए गए इस परीक्षण को 50 साल पूरे हो गए हैं।

बुद्ध पूर्णिमा के दिन ऑपरेशन को अंजाम देने की वजह से भी इस ऑपरेशन का नाम स्माइलिंग बुद्धा रखा गया था। दरअसल साल 1974 में 18 मई को परमाणु परीक्षण की तारीख फिक्स हो गई थी।

उस समय दुनियाभर के देश भारत की जासूसी में लगे थे। यूएन में सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के अलावा किसी अन्य देश ने परमाणु परीक्षण नहीं किया था। ऐसे में इस ऑपरेशन को गुपचुप तरीके से पूरा करना एक बड़ी चुनौती थी। 

आपको बता दें कि पोखरण रेंज पाकिस्तान की सीमा के करीब है। भारत ने 50 साल पहले ही दुनिया को हैरान कर दिया था जब परमाणु परीक्षण किया गया और दुनिया को पता भी नहीं चला।

भारत का कहना था कि यह परमाणु परीक्षम शांति बनाए रखने के लिए ही किया गया था। इसीलिए इसका नाम स्माइलिंग बुद्धा और भी प्रासंगिक हो जाता है। भारत ने कहा था कि यह हथियार आत्मरक्षा के लिए है। भारत कभी किसी देश पर परमाणु हमला नहीं करेगा। 

18 मई 1974 को BARC के डायरेक्टर प्रणब दस्तीदार ने सुबह 8 बजकर 5 मिनट पर विस्फोट गकिया था। बताया जाता है कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस टेस्ट को इजाजत दे दी थी और इसकी भनक रक्षा मंत्री तक को नहीं लगी थी। इंदिरा गांधी ने कहा, डॉ. रमन्ना आप आगे बढ़िए। यह टेस्ट देश के हित में होगा।

एक रिपोर्ट में कहा गया कि मुंबई से विस्फोटक और अन्य सामग्री पोखरण पहुंचाई गई थी। रमन्ना ने अपने निधन से पहले बताया था, यह बम ही था। बम का धमाका ही होता है। जैसे कि बंदूक चलती है तो आवाज होती है चाहे आप किसी पर चलाएं या फिर जमीन पर चला दें। 

इस टेस्ट को पीसफुल न्यूक्लियर एक्सप्लोजन बताया गया था। दरअसल प्लूटोनियम की सप्लाई कनाडा और अमेरिका से हुई थी।

जब टेस्ट की बात दोनों  देशों को पता चली तो वे भारत के विरोध में खड़े हो गए। उनका कहना था कि इसका इस्तेमाल केवल शांतिपूर्ण कार्यों के लिए किया जा सकता था। अब तक इस बात को लेकर बहस चल रही है कि यह एक पीसफुल न्यूक्लियर एक्सप्लोजन था या फिर परमाणु बम का टेस्ट था। 

एक तरफ पंडित नेहरू ने हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा दिया था। लेकिन इंदिरा गांधी के विचार अलग थे। चीन परमाणु शक्ति संपन्न था और यह भारत के लिए बड़ी चुनौती थी।

ऐसे में इंदिरा गांधी ने परमाणु कार्यक्रम को तेज कर दिया। 75 वैज्ञानिकों की टीम ने परमाणु परीक्षण को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। इस टीम की कमान राजा रमन्ना के हाथों में थी। इस परीक्षण के बाद दुनियाभर के देशों ने भारत की ताकत का लोहा माना था।