क्लाइमेट चेंज के दौर में परमाणु ऊर्जा का जाप…
फुकुशिमा हादसे के बाद कई देश परमाणु बिजलीघरों को बढ़ावा देने को बेवकूफी मान रहे थे। लेकिन एक बार फिर से न्यूक्लियर एनर्जी को सबसे साफ और भरोसेमंद विकल्प के…
फुकुशिमा हादसे के बाद कई देश परमाणु बिजलीघरों को बढ़ावा देने को बेवकूफी मान रहे थे।
लेकिन एक बार फिर से न्यूक्लियर एनर्जी को सबसे साफ और भरोसेमंद विकल्प के रूप में पेश किया जा रहा है.बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में तीस देशों के नेता और प्रतिनिधि मिल रहे हैं।
मकसद है, परमाणु ऊर्जा पर समर्थन जुटाना। न्यूक्लियर एनर्जी के समर्थक दावा कर रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए इस तकनीक का भरपूर उपयोग करना जरूरी हो चुका है।
साल 2011 में जापान के फुकुशिमा दाइची परमाणु बिजलीघर में हुई तबाही के बाद कुछ देशों ने परमाणु ऊर्जा को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था। लेकिन फरवरी 2022 में शुरू हुए यूक्रेन युद्ध ने इस फैसले को डगमगा दिया है।
अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) प्रमुख रफाएल ग्रोसी कहते हैं, “हमें परमाणु ऊर्जा की भागीदारी बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास करने होंगे” यूक्रेन युद्ध से पहले यूरोप के ज्यादातर देश, तेल और गैस की सप्लाई के लिए रूस पर निर्भर थे।
रूस से बड़ी मात्रा में ईंधन आयात करने के कारण यूरोपीय देशों ने मॉस्को को आर्थिक रूप से मजबूत किया। रूस ने इस मुनाफे के कारण अपनी सैन्य शक्ति कई गुना बढ़ा ली और फिर यूक्रेन पर हमला कर दिया।
बीते दो साल से यूरोप के देश इस निर्भरता को कम करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि वे आर्थिक और सामरिक रूप से स्वतंत्र रहें।
जलवायु लक्ष्य और स्वच्छ ऊर्जा आईएईए के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर फातिह बिरोल का तर्क है कि “हमारे पास परमाणु ऊर्जा के बिना, समय से जलवायु लक्ष्यों तक पहुंचने का मौका नहीं है।
अक्षय ऊर्जा स्रोत खासकर सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा बिजली मुहैया कराने में बड़ी भूमिका निभाएंगे, लेकिन हमें परमाणु ऊर्जा भी चाहिए, खासकर उन देशों में, जहां अक्षय ऊर्जा के लिए बहुत ज्यादा संभावनाएं नहीं हैं” क्या भारत में निजी कंपनियां भी करेंगी परमाणु ऊर्जा में निवेश फिलहाल पूरी दुनिया में परमाणु रिएक्टरों से बनने वाली बिजली की मात्रा करीब 10 फीसदी है।
यूरोप में फ्रांस सबसे ज्यादा परमाणु ऊर्जा पैदा करने वाला देश है।
वहां कुल बिजली उत्पादन में न्यूलियर एनर्जी की हिस्सेदारी दो तिहाई है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने ब्रसेल्स में कहा, “हमें सीओटू उत्सर्जन के बारे में ज्यादा चिंतित होना चाहिए क्योंकि इसका आपकी और मेरी सेहत पर हर रोज सीधा असर पड़ रहा है” माक्रों के मुताबिक, “कोयले व गैस से छुटकारा पाना और परमाणु ऊर्जा व अक्षय ऊर्जा की तरफ बढ़ना हमारी प्राथमिकता में होना चाहिए” परमाणु ऊर्जा के साथ जुड़ी चिंताएं बैठक के दौरान 1986 में यूक्रेन के चेर्नोबिल में हुए परमाणु बिजलीघर हादसे का बमुश्किल जिक्र किया गया।
बैठक जिस परमाणु संयंत्र के पास हो रही थी, उसके करीब ही पर्यावरण कार्यकर्ता न्यूक्लियर एनर्जी का विरोध भी कर रहे थे। आलोचकों के मुताबिक, परमाणु बिजलीघर बनाने में लंबा वक्त और खूब पैसा खर्च होता है।
हादसा होने पर विकिरण को रोकना मुश्किल होता है। इसके साथ ही यहां से निकलने वाला रेडियोधर्मी परमाणु कचरे का निपटारा भी हमेशा का सिरदर्द बना रहता है।
पर्यावरण संगठन 'ग्रीनपीस' की लोरेले लिमोजिन कहती हैं, “सरकारों को परमाणु ऊर्जा की परीकथा के बजाए, अक्षय ऊर्जा का विकास करने, ऊर्जा बचाने, घरों को किफायती बनाने और सार्वजनिक परिवहन पर ध्यान देना चाहिए” इस वक्त दुनिया भर में करीब 440 परमाणु बिजलीघर हैं।
सबसे ज्यादा परमाणु ऊर्जा पैदा करने वाले देशों में अमेरिका, चीन, फ्रांस और रूस शीर्ष पर हैं।
भारत 12वें नंबर पर है, 23 चालू संयंत्रों के साथ भारत के इलेक्ट्रिसिटी ग्रिड में न्यूक्लियर एनर्जी की हिस्सेदारी 3.1 फीसदी है. ओएसजे/आरपी (एपी, एएफपी)।