चुनावी बॉन्ड मामले में आमने सामने सुप्रीम कोर्ट (SC) बार एसोसिएशन, अपने ही अध्यक्ष के खिलाफ खोला मोर्चा…
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) की कार्यकारी समिति ने मंगलवार को एससीबीए प्रमुख आदीश सी अग्रवाल द्वारा राष्ट्रपति को लिखे गए पत्र से खुद को अलग कर लिया है। दरअसल…
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) की कार्यकारी समिति ने मंगलवार को एससीबीए प्रमुख आदीश सी अग्रवाल द्वारा राष्ट्रपति को लिखे गए पत्र से खुद को अलग कर लिया है।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के प्रमुख आदिश अग्रवाल ने एक असामान्य घटनाक्रम में मंगलवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर उनसे चुनावी बॉण्ड योजना संबंधी फैसले के संदर्भ में उच्चतम न्यायालय से परामर्श लेने का आग्रह किया था।
बार एसोसिएशन ने पत्र की भाषा की भी निंदा की है और इसे सर्वोच्च न्यायालय के “अधिकार को खत्म करने और कमजोर करने का प्रयास” बताया।
राष्ट्रपति से पत्र में क्या मांग की?
आदिश सी अग्रवाल ऑल इंडिया बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने न्यायालय से यह भी आग्रह करने का अनुरोध किया कि जब तक शीर्ष अदालत मामले की दोबारा सुनवाई न कर ले, तब तक संबंधित फैसले पर अमल न किया जाए।
अग्रवाल ने राष्ट्रपति को लिखे अपने पत्र में कहा है, ‘‘विभिन्न राजनीतिक दलों को चंदा देने वाले कॉरपोरेट घरानों के नामों का खुलासा करने से ये घराने उत्पीड़न की दृष्टि से संवेदनशील हो जाएंगे।’’
अग्रवाल ने कहा, ‘‘अगर कॉरपोरेट घरानों के नाम और विभिन्न दलों को दिये गये चंदे की राशि का खुलासा किया जाता है, तो कम चंदा पाने वाले दलों द्वारा इन्हें निशाना बनाए जाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है और उन्हें परेशान किया जाएगा। यह (कॉरपोरेट कंपनियों से) स्वैच्छिक चंदा स्वीकार करते वक्त उनके साथ किये गये वादे से मुकरने जैसा होगा।’’
उन्होंने कहा कि यदि सभी संवेदनशील जानकारियों को जारी किया जाता है, और वह भी पूर्वव्यापी प्रभाव से तो इससे ‘अंतरराष्ट्रीय जगत में राष्ट्र की प्रतिष्ठा’ धूमिल होगी। उन्होंने कहा कि खुलासे से भविष्य में चंदा खत्म हो जाएगा और इस तरह का कृत्य विदेशी कॉरपोरेट संस्थाओं को भारत में अपना कारोबार स्थापित करने या लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने से हतोत्साहित एवं विरत करेगा।
हालांकि यह पत्र ‘ऑल इंडिया बार एसोसिएशन’ के लेटरहेड पर छपा था, लेकिन इसमें अग्रवाल के हस्ताक्षर के नीचे उनका पदनाम ‘एससीबीए अध्यक्ष’ लिखा था। इसके खिलाफ एससीबीए सचिव रोहित पांडे ने प्रस्ताव पारित किया है।
उन्होंने प्रस्ताव में लिखा, “इसलिए, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की कार्यकारी समिति के लिए यह स्पष्ट करना जरूरी हो गया है कि समिति के सदस्यों ने न तो राष्ट्रपति को ऐसा कोई पत्र लिखने के लिए (अध्यक्ष को) अधिकृत किया है और न ही वे उसमें व्यक्त किए गए उनके विचारों से सहमत हैं।”
इसमें कहा गया है, “सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की कार्यकारी समिति इस कृत्य के साथ-साथ इसकी भाषा को भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार को खत्म करने और कमजोर करने के प्रयास के रूप में देखती है और स्पष्ट रूप से इसकी निंदा करती है।”
एससीबीए अध्यक्ष ने राष्ट्रपति मुर्मू से चुनावी बॉण्ड मामले में उच्चतम न्यायालय से परामर्श मांगने का आग्रह किया, ताकि पूरे मामले में दोबारा सुनवाई हो सके और ‘‘भारत की संसद, राजनीतिक दलों, कॉरपोरेट और आम जनता’’ को पूरा न्याय मिल सके। संविधान का अनुच्छेद 143 सर्वोच्च न्यायालय को ‘परामर्श का क्षेत्राधिकार’ प्रदान करता है और भारत के राष्ट्रपति को शीर्ष न्यायालय से परामर्श लेने का अधिकार देता है।
यदि राष्ट्रपति को ऐसा लगता है कि विधि या तथ्य का कोई प्रश्न वर्तमान या भविष्य में उठ सकता है तथा शीर्ष अदालत की राय प्राप्त करना जरूरी है, तो राष्ट्रपति उस प्रश्न को उच्चतम न्यायालय के समक्ष परामर्श के लिये भेज सकता है।
शीर्ष अदालत ने सोमवार को भारतीय स्टेट बैंक को आदेश दिया था कि वह राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए चुनावी बॉण्ड के विवरण को 12 मार्च को कामकाजी अवधि की समाप्ति तक निर्वाचन आयोग को अवगत कराए।
न्यायालय ने बैंक को यह भी चेतावनी दी थी कि यदि बैंक उसके निर्देशों और समय-सीमा का पालन करने में विफल रहता है, तो उसके खिलाफ ‘‘जानबूझकर अवज्ञा’’ करने का मामला चलाया जा सकता है।