चांद पर इंसान कभी नहीं उतरा… AI के बरगलाने को सच मान बैठे लोग, नई रिसर्च में दावा…
जीवन के अधिकांश क्षेत्रों में अब एआई तकनीक (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) का दखल काफी बढ़ गया है। कई देशों ने इसे रोजमर्रा के रूप में प्रभावी ढंग से उतार दिया है।…
जीवन के अधिकांश क्षेत्रों में अब एआई तकनीक (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) का दखल काफी बढ़ गया है।
कई देशों ने इसे रोजमर्रा के रूप में प्रभावी ढंग से उतार दिया है। क्या एआई हमारे दिमाग पर भी हावी हो सकता है या उसे बरगला सकता है? इसे लेकर अमेरिका में हालिया शोध से चौंकाने वाले परिणाम सामने आए हैं।
शोध को लेकर पता चलता है कि एआई हमारी सोच को भी बदल सकता है। यह हमारे मस्तिष्क में वर्षों से चली आ रही थ्योरी को भी बदल सकता है।
शोध में ऐसे विषयों को शामिल किया गया- जैसे चांद पर इंसान के उतरने की बात मनढंगत थी या कोरोना वैक्सीन टीकों पर माइक्रो चिप्स लगाए गए हैं। हैरानी की बात यह है कि लोग एआई के बरगलाने पर आसानी से यकीन भी कर गए।
अमेरिकी विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. थॉमस कॉस्टेलो की अध्यक्षता में किए गए अध्ययन से पता चला कि एआई वास्तव में हमारी किसी विषय पर आलोचनात्मक सोच को और प्रभावी ढंग से बढ़ावा दे सकता है और तथ्य-आधारित प्रतिवादों को गलत साबित कर सकता है।
कॉस्टेलो की अध्यक्षता में 2190 लोगों को इस प्रयोग में शामिल किया गया। इनमें से अधिकांश लोगों ने एआई द्वारा भ्रमित करने पर उसे सच मान लिया।
दिमाग पर कैसे हावी हुआ एआई
प्रतिभागियों को एआई के साथ तीन दौर की बातचीत में शामिल किया गया। इसके बाद, वे अपनी वर्षों पुरानी सोच को बदलने पर मजबूर हो गए।
कई लोग एआई द्वारा बरगलाने पर यह मान गए कि उनकी किसी विषय को लेकर अवधारणा या सोच गलत थी। यह बदलाव न्यूनतम देखा गया। हालांकि कम से कम दो महीने तक एआई की बात का उनके दिमाग पर प्रभाव हावी रहा।
डॉ. कॉस्टेलो ने कहा, “जिन लोगों ने प्रयोग की शुरुआत में एआई पर विश्वास किया, उनमें से लगभग एक-चौथाई लोग बाद में उस विश्वास के बिना ही बाहर आ गए। अधिकांश मामलों में, एआई केवल लोगों को थोड़ा अधिक संदेहशील और अनिश्चित बना पाया। हालांकि चुनिंदा लोग यह यकीन करने में कामयाब रहे कि एआई उन्हें बरगलाने की कोशिश कर रहा है।”
सोशल मीडिया पर प्रोपेगेंडा को दूर करेगा एआई
इस तरह के शोध से यह पता लगता है कि एआई सोशल मीडिया पर गलत सूचनाओं को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सैंडर वैन डेर लिंडेन ने इस बात पर सवाल उठाए कि क्या लोग वास्तविक जीवन की स्थितियों में एआई के साथ उत्सुकता से भाग लेंगे? अभी भी बड़ा प्रश्न यही है। इस रिसर्च में इस साजिश को भी बल मिलता है कि अगर एआई का इस्तेमाल गलत और मतिभ्रम के लिए किया जाए तो यह खतरनाक साबित हो सकता है।
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