बदनाम तालिबान ने खुलेआम उतारा मौत के घाट, फुटबॉल स्टेडियम में हत्या के दोषियों को गोलियों से भूना

क्रूर और हिंसक कानूनों के लिए दुनियाभर में बदनाम तालिबान का असली चेहरा अब दुनिया के सामने आने लगा है। अच्छाई का ढोंग करने वाली तालिबानी सरकार का काला सच…

बदनाम तालिबान ने खुलेआम उतारा मौत के घाट, फुटबॉल स्टेडियम में हत्या के दोषियों को गोलियों से भूना

क्रूर और हिंसक कानूनों के लिए दुनियाभर में बदनाम तालिबान का असली चेहरा अब दुनिया के सामने आने लगा है।

अच्छाई का ढोंग करने वाली तालिबानी सरकार का काला सच एक बार फिर सामने आया है।

एएफपी की रिपोर्ट है कि तालिबानी हुकूमत ने गुरुवार को पूर्वी अफगानिस्तान में एक फुटबॉल स्टेडियम में हत्या के दो दोषियों को सार्वजनिक रूप से मौत के घाट उतार दिया।

इन दो लोगों की मौत की हस्ताक्षर तालिबान के सर्वोच्च नेता हिबतुल्ला अखुंदजादा ने किए थे। तालिबान ने एक बार फिर साबित किया है कि वह आंख के बदले आंख लेने की अपनी पुरानी परंपरा पर कायम है।

घटनास्थल पर मौजूद एएफपी पत्रकार के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के अधिकारी अतीकुल्लाह दरविश ने तालिबान के सर्वोच्च नेता हिबतुल्ला अखुंदजादा द्वारा हस्ताक्षरित डेथ वारंट को जोर से पढ़ा और उसके बाद गजनी शहर में दोनों व्यक्तियों को गोलियों से भून दिया गया।

दरविश ने कहा, “इन दोनों लोगों को हत्या के अपराध में दोषी ठहराया गया था। अदालत ने दो साल की सुनवाई के बाद आदेश पर हस्ताक्षर किए गए।” इन दोनों की मौत का तमाशा देखने के लिए तालिबानी सरकार के आदेश पर हजारों लोग स्टेडियम में एकत्र हुए थे।

दोषियों के घरवाले भी मौजूद थे
दोषी व्यक्तियों के पीड़ितों के परिवार उपस्थित थे और उनसे पूछा गया कि क्या वे अंतिम समय में अपने परिजनों के लिए कुछ कहना चाहते हैं? लेकिन उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया।

गौरतलब है कि काबुल में 2021 में सत्ता संभालने और इस्लाम की सख्त व्याख्या लागू करने के बाद से तालिबान को किसी अन्य सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी गई है।

तालिबान के सर्वोच्च नेता अखुंदज़ादा ने 2022 में न्यायाधीशों को इस्लामी कानून के सभी पहलुओं को पूरी तरह से लागू करने का आदेश दिया था- जिसमें “आँख के बदले आँख” वाली सज़ा जिसे स्थानीय भाषा में “क़िसास” कहा जाता है, भी शामिल है।

अफगानिस्तान में तालिबान ने अपने कानूनों में काफी कड़े नियमों को लागू किया है। जिसमें मौत और शारीरिक दंड शामिल हैं। जैसे कोड़े मारना, सड़क पर पत्थर से पीट-पीटकर हत्या शामिल है। 1996 से 2001 तक तालिबान के पहले शासन के दौरान अफगानिस्तान में सार्वजनिक तौर पर मौत की सजा देना आम बात थी।

बताया जा रहा है कि 22 फरवरी को हत्या के दो दोषियों को मौत की सजा देना तालिबान अधिकारियों के सत्ता में लौटने के बाद दी गई तीसरी और चौथी मौत की सजा है।

पहले दो को भी हत्या का दोषी ठहराया गया था। पिछली फांसी जून 2023 में दी गई थी, जब लघमान प्रांत में एक मस्जिद के मैदान में लगभग 2000 लोगों के सामने एक दोषी हत्यारे की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

चोरी और शराब पीने पर कोड़े मारने की सजा
हालांकि, चोरी, व्यभिचार और शराब सेवन सहित अन्य अपराधों के लिए सार्वजनिक रूप से कोड़े मारने की सजा सुनाई जाती है।

इसके अलावा तालिबान सरकार ने लड़कियों और महिलाओं को हाई स्कूलों और विश्वविद्यालयों से भी प्रतिबंधित कर दिया है। उन्हें पार्कों, मनोरंजन मेलों और जिमों में जाने पर प्रतिबंध लगा दिया है।