मिडल ईस्ट में अकेला नहीं इजरायल, जानें क्यों ईरान के खिलाफ साथ देने लगे मुस्लिम देश…

ईरान ने इजरायल पर दनादन 300 मिसाइल दाग दिए। वहीं इजरायल पहुंचने से पहले ही ये सारी मिसाइलें और ड्रोन धराशायी भी हो गए। इजरायल का साथ देने के लिए…

ईरान ने इजरायल पर दनादन 300 मिसाइल दाग दिए।

वहीं इजरायल पहुंचने से पहले ही ये सारी मिसाइलें और ड्रोन धराशायी भी हो गए। इजरायल का साथ देने के लिए एक तरफ अमेरिका, यूके और फ्रांस उतर पड़े तो दूसरी तरफ जॉर्डन ने भी कई मिसाइलों को अपने ही एयरस्पेस में मार गिराया।

दुनिया जॉर्डन के इस ऐक्शन से हैरान इसलिए है क्योंकि गाजा में हमासे के खिलाफ युद्ध के दौरान जॉर्डन खुलकर इजरायल का विरोध करता दिखा।

वहीं यह भी कहा जा रहा है अरब देशों में इजरायल का साथ देने वाला जॉर्डन अकेला देश नहीं है बल्कि सऊदी अरब भी इजरायल के साथ खड़ा है। हालांकि दोनों ही देशों ने खुलकर इस बारे में कुछ नहीं कहा है। 

फ्रांस के बारे में यह स्पष्ट नहीं है कि उसने ईरानी मिसाइलों को नष्ट किया या नहीं। फिर भी उसने अप्रत्यक्ष रूप से इजरायल का साथ जरूर दिया है।

वहीं जॉर्डन की वायुसेना ने खुलकर इजरायल का साथ दिया और अपने एयरस्पेस में ड्रोन और मिसाइलों को नष्ट कर दिया जिससे वे इजरायल तक पहुंच ही नहीं पाईं। वैसे तो इजरायल के एयरस्पेस में पहुंचने से पहले ही इजरायली ऐरो सिस्टम इन हथियारों को निपटाने के लिए काफी थी। 

न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक जॉर्डन की राजधानी अम्मान में लोगों ने रात के समय धमाकों की आवाजें सुनीं। बताया गया कि सऊदी अरब ने भी इजरायल के लिए अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग की भूमिका निभाई।

ब्रिटिश अखबार द इकोनॉमिस्ट के मुताबिक मिडल ईस्ट में इजरायल अब अकेला नहीं है बल्कि कई मुस्लिम देश उसके साथ हैं।

इनमें जॉर्डन और सऊदी अरब शामिल हैं। ईरान के अटैक के बाद इजरायल को नए सहयोगी मिल रहे हैं। जॉर्डन गाजा में इजरायल के हमलों का जमकर विरोध कर रहा था। जॉर्डन में हर पांचवां शख्स फिलिस्तीनी है। इसके अलावा देश की रानी भी एक फिलिस्तीनी महिला हैं। जॉर्डन में इजरायल का खूब विरोध हो रहा था। 

इजरायल और जॉर्डन की सीमा भी जुड़ी हुई है। इजरायल की अल अक्सा मस्जिद मुस्लिमों, ईसाइयों और यहूदियों सभी के लिए महत्वपूर्ण हैं। ऐसे में पर्दे के पीछे ही सही कई मुस्लिम देशों को इजरायल के साथ काम करना पड़ता है।

वहीं बैलेंस बनाने के लिए भी सऊदी अरब और जॉर्डन को इजरायल का साथ देना पड़ा क्योंकि अमेरिका इजरायल का पुराना सहयोगी रहा है। इसे राजनीतिक स्थिरता और आत्मरक्षा का उपाय भी कहा जा सकता है। 

जॉर्डन की तरफ से यही कहा गया है कि वह खुद की रक्षा कर रहा था। उसके एयरस्पेस में आए मिसाइल और ड्रोन से उसके ही लोगों को नुकसान पहुंच सकता था।

इंस्टिट्यूट फॉर स्ट्रैटजिक स्टडीज के एमिले होकायेम ने बताया कि जॉर्डन और अमेरिका के बीच संबंध अच्छे हैं। वहीं सऊदी अरब को भी अपने हितों को बैलेंस करना है।

7 अक्टूबर की घटना से पहले अरब देश इजरायल के साथ संबंध सुधारने पर काम भी कर रहे थे। वहीं हमास ने हमला करके खेल बिगाड़ दिया और गाजा में फिर युद्ध शुरू हो गया। 

गाजा में पिछले छह महीनों में 33000 लोगों की जान जा चुकी है। सऊदी अरब भी इजरायल की गाजा में कार्रवाई के खिलाफ था। पर्दे के पीछे से फिर भी सऊदी अरब इजरायल के साथ संबंध सुधारने के प्रयास कर रहा था। वहीं बात करें ईरान की तो उसके संबंध सऊदी अरब से भी अच्छे नहीं रहे हैं।

मध्य पूर्व एशिया धर्म के आधार पर बंटा हुआ है। खाड़ी के देशों में सुन्नी आबादी है और वहीं ईरान शिया मुस्लिम बहुल देश है। ऐसे में दोनों में विरोध साफ दिखाई दे जाता है। 

इराक, सीरिया और लेबनान जेसे देशों में शिया और सुन्नी दोनों ही हैं। ऐसे में इन देशों में ईरान का प्रभाव दिखाई देता है। यमन के हुती विद्रोही और लेबनान के हिजबुल्लाह को ईरान से सीधा सपोर्ट मिलता है। वहीं गाजा का हमास भी ईरान द्वारा समर्थित है।

लेकिन यह एक अपवाद है क्योंकि हमास में सुन्नी मुसलमान हैं। ईरान ने जब इरका के ऊपर से मिसाइलें दागीं तो वहां अमेरिकी बेस से इन्हें नष्ट कर दिया गया।