शादी में दूल्हा-दुल्हन को 7 फेरों के बाद क्यों दिखाते हैं ध्रुव तारा? क्या है ये परंपरा, जानें इस खास रस्म के बारे में
हिंदू धर्म में विवाह सिर्फ एक दिन का इवेंट नहीं है. इसकी रस्में करीब 3 दिन तक चलती हैं जो कई बार अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न हो सकती हैं. तिलक…
हिंदू धर्म में विवाह सिर्फ एक दिन का इवेंट नहीं है. इसकी रस्में करीब 3 दिन तक चलती हैं जो कई बार अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न हो सकती हैं. तिलक फलदान और गोद भराई से शुरू हुई रस्में कन्यादान, सिंदूरदान और फेरे के बाद भी खत्म नहीं होतीं क्योंकि 7 फेरों के बाद भी कई ऐसी रस्में निभाना होती हैं जिनके बिना विवाह संपन्न नहीं माना जाता. इनमें से एक है फेरों के बाद ध्रुव तारा दिखाना. आपने यदि हिन्दू विवाह की रस्मों को पूरी तरह से देखा है तो आपने भी दूल्हा द्वारा अपनी दुल्हन को ध्रुव तारा दिखाते हुए देखा होगा. विवाह के बीच में ध्रुव तारा क्यों देखा जाता है और यह किसका प्रतीक है?
किसका प्रतीक है ध्रुव तारा?
हिन्दू धर्म में ध्रुव तारा का बड़ा महत्व बताया गया है. इसे उत्तर सितारा के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यह उत्तर दिशा को इंगित करता है. ऐसी मान्यता है कि, भगवान विष्णु ने आकाश में नजर आने वाले ध्रुव तारा को ही पहला तारा माना था.
क्यों दिखाया जाता है ध्रुव तारा?
जब विवाह होने वाला होता है तब बीच में ही यानी कि फेरों के बाद ध्रुव तारा दिखाने की रस्म होती है. इसमें दूल्हा अपनी दुल्हन को सप्त ऋषियों के साथ ध्रुव तारा का आकाश में दिखाता है. ऐसा कहा जाता है कि जिस प्रकार आकाश में ध्रुव तारा स्थिर होता है वैसे ही इसे देखने वाले वर और वधु के जीवन में प्रेम भी स्थिर बना रहता है.
इसके अलावा ध्रुव तारे को ही शुक्र का तारा भी कहा गया है और शुक्र भौतिक जीवन या यूं कहें के सुखमय जीवन का दाता है. इसलिए ध्रुव तारा के दर्शन से नवदंपत्ति का जीवन भी सुखमय हो जाता है.
7 फेरों के बाद ही क्यों देखा जाता है ध्रुव तारा?
यह सवाल किसी के भी मन में आता है कि ध्रुव तारा सात फेरों के बाद ही क्यों दिखाया जाता है. इसका कारण यह कि, इस समय तक विवाह संपन्न होने की कगार पर होता है और इसलिए जब दूल्हा दुल्हन एक दूसरे के हो चुके होते हैं तो उनके संबंध में स्थिरता लाने के लिए ध्रुव तारा दिखाया जाता है.