भाजपा की सरकार ने गुजरात में भी दी शराबबंदी कानून में ढील, बिहार में तेज होती मांग…
देश के कुछ राज्यों में शारबबंदी कानून लागू है। बिहार से पहले गुजरात और मणिपुर जैसे राज्य उनमें शामिल हैं। मणिपुर में हाल ही में 30 साल पुराने उस कानून…
देश के कुछ राज्यों में शारबबंदी कानून लागू है। बिहार से पहले गुजरात और मणिपुर जैसे राज्य उनमें शामिल हैं।
मणिपुर में हाल ही में 30 साल पुराने उस कानून को खत्म कर दिया गया, जिसमें शराब पीना, बेचना या खरीदना अपराध था। इसके बाद गुजरात में भी इसके सेवन की शर्तों में छूट दी गई है।
गुजरात सरकार ने गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक-सिटी (गिफ्ट) में होटलों, रेस्टोरेंट और क्लबों में शराब पीने की इजाजत दे दी है। यहां काम करने वाले कर्मचारियों और मालिकों को शराब एक्सेस परमिट दिया जाएगा।
इससे पहले हाल ही में मणिपुर में भाजपा की सरकार ने 30 साल से अधिक समय के बाद शराब पर प्रतिबंध हटाने का फैसला किया था।
कैबिनेट ने राज्य का राजस्व बढ़ाने और जहरीली शराब की सप्लाई रोकने के लिए शराब नीति में सुधार किया है।
मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली कैबिनेट ने राज्य में 30 साल से अधिक के प्रतिबंध के बाद शराब के निर्माण, उत्पादन, कब्जे, निर्यात, आयात, परिवहन, खरीद, बिक्री और खपत को मंजूरी दे दी थी। सितंबर 2022 में शराबबंदी पर लगे प्रतिबंध को आंशिक रूप से हटा दिया गया था।
आपको बता दें कि शराबबंदी एक बहुत ही संवेदनशील विषय है। इस विषय पर कोई भी सरकार किसी तरह का फैसला लेने से पहले कई बार सोच-विचार करती है।
टैक्स की दृष्टि से यह सरकार के लिए कमाई का अहम जरिया है। मणिपुर की बात करें तो वहां शराबबंदी कानून हटाने से 600-700 करोड़ रुपये की कमाई होगी।
सरकार ने यह भी दावा किया है कि इससे अवैध शराब की बिक्री और नशीली दवाओं के प्रसार के खतरे से निपटने में भी मदद मिलेगी।
बिहार में नीतीश कुमार ने महिलाओं की मांग पर इसका ऐलान किया था। इस मुद्दे पर अब खूब राजनीति होती है। जीतनराम मांझी जैसे नेता खुलकर इसकी खिलाफत करते हैं।
सत्ता में आने से पहले आरजेडी के भी कई नेता इसके खिलाफ बोलते आए हैं। हालांकि, लालू यादव की पार्टी इस मुद्दे पर संभलकर ही बोलती है।
हाल ही में कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन अल्कोहलिक बेवरेज कंपनीज (सीआईएबीसी) ने एक बार फिर बिहार सरकार से मणिपुर सरकार के फैसले की तरह राज्य में शराब पर पूर्ण प्रतिबंध हटाने की अपील की थी। उन्होंने कहा था कि इससे बिहार सरकार की कमाई भी बढ़ेगी।
वहीं, इस मामले में बिहार के निषेध और उत्पाद शुल्क मंत्री सुनील कुमार ने कहा कि राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों द्वारा सर्वसम्मति से पारित होने के बाद शराबबंदी राज्य सरकार का एक नीतिगत निर्णय था और इसे वापस नहीं लिया सकता है।
मांझी का वादा- सरकार बनी तो हटाएंगे शरारबंदी कानून
बिहार में 2016 से पूर्ण शराबबंदी लागू है। हालांकि, इसके बाद भी जहरीली शराब से मरने वालों के कई मामले सामने आते रहे हैं। इस बहाने नीतीश सरकार पर विपक्ष लगातार हमलावर रहता है। हाल ही में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन मांझी ने शराबबंदी को फेल बताया था। उन्होंने दावा किया था कि इस कानून के कारण जेल में बंद होने वाले लोगों में 80 फीसदी दलित समाज के लोग हैं। मांझी ने दावा किया था कि यदि हमारी सरकार आएगी तो गुजरात की तर्ज पर इस कानून को लागू करेंगे या इस कानून को पूरी तरह खत्म कर देंगे। उन्होंने कहा कि मद्य निषेध विभाग द्वारा कराए जा रहे सर्वेक्षण में फिर आएगा कि शराबबंदी सफल है। जातीय सर्वे की तरह ही यह भी झूठा होगा।