उज्जैन में मौजूद है कुबेर देव जी की 1100 साल पुरानी प्रतिमा, धनतेरस पर नाभि में घी डालने का है विशेष महत्व
उज्जैन, धार्मिक परंपराओं और आस्थाओं से भरा पवित्र शहर है, जहां कई ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण मंदिर हैं. इन्हीं में से एक है कुंडेश्वर महादेव मंदिर, जहां 1100 साल पुरानी कुबेर…
उज्जैन, धार्मिक परंपराओं और आस्थाओं से भरा पवित्र शहर है, जहां कई ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण मंदिर हैं. इन्हीं में से एक है कुंडेश्वर महादेव मंदिर, जहां 1100 साल पुरानी कुबेर देव की अनोखी प्रतिमा विराजमान है. उज्जैन में स्थित यह मंदिर विशेष रूप से धनतेरस के अवसर पर श्रद्धालुओं का प्रमुख आकर्षण बनता है. यहां कुबेर जी की नाभि पर घी और इत्र का लेप लगाने की परंपरा है, जो भक्तों के जीवन में धन-धान्य और समृद्धि का वास लाने में सहायक मानी जाती है.
कुबेर देव की अनोखी प्रतिमा और महिमा
कुंडेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित कुबेर जी की प्रतिमा को 1100 साल पुरानी बताया जाता है. इस प्रतिमा को मध्यकालीन शिल्पकारों द्वारा निर्मित माना जाता है, जोकि शंगु काल के उच्चकोटि के शिल्पकारों द्वारा निर्मित है. कुबेर जी की यह प्रतिमा बैठी मुद्रा में है, जो उन्हें धन के रक्षक और समृद्धि के देवता के रूप में प्रतिष्ठित करती है. प्रतिमा का आकर्षण इसकी तीखी नाक, उभरी हुई तोंद और अलंकारों से सुसज्जित स्वरूप में है, जो इसे अद्वितीय बनाता है.
घी और इत्र से कुबेर की नाभी पर लगाने की परंपरा
कुबेर जी की पूजा की अनोखी विशेषता यह है कि उनकी नाभि पर शुद्ध घी और इत्र का लेप किया जाता है. सांदीपनि आश्रम के पुजारी पंडित शिवांस व्यास बताते हैं कि कुबेर जी की पूजा में उनके उभरे हुए पेट (तोंद) पर घी मलने से विशेष लाभ होते हैं. यह माना जाता है कि धनतेरस के दिन कुबेर की नाभि पर इत्र और घी का लेप करने से माता लक्ष्मी का वास होता है, और भक्तों के जीवन में समृद्धि आती है. इस पूजा के बाद कुबेर जी को मिठाई का भोग लगाया जाता है, जिससे वे प्रसन्न होकर भक्तों की हर धन-संबंधी मनोकामना पूर्ण करते हैं.
श्रीकृष्ण से जुड़ी मान्यता
धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार, कुबेर जी की यह प्रतिमा श्रीकृष्ण के समय की है. ऐसा माना जाता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण अपने भाई बलराम और मित्र सुदामा के साथ सांदीपनि आश्रम में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, तब यह प्रतिमा उन्हें आश्रम में मिली थी. जब श्रीकृष्ण ने अपनी शिक्षा पूरी कर ली और घर लौटने का समय आया, तब भगवान नारायण के सेवक कुबेर धन लेकर आश्रम में आए थे. किंतु गुरु सांदीपनि ने वह धन स्वीकार नहीं किया, और श्रीकृष्ण को गुरुदक्षिणा में अपने बेटे को वापस लाने का कहा. तब श्रीकृष्ण ने गुरु माता के बेटे को जीवनदान दिया और कुबेर जी से खजाना लेकर द्वारका नगरी का निर्माण किया.
धनतेरस पर कुबेर के दर्शन का विशेष महत्व
हर वर्ष धनतेरस के अवसर पर कुंडेश्वर महादेव मंदिर में कुबेर जी के दर्शन के लिए सैकड़ों श्रद्धालु उमड़ते हैं. इस दिन कुबेर जी की विशेष पूजा होती है, और भक्त उनकी प्रतिमा पर घी और इत्र लगाकर अपनी आर्थिक उन्नति की कामना करते हैं. देश-विदेश से आए श्रद्धालु कुबेर देव की पूजा-अर्चना करते हैं और धन-संपदा के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.
श्री यंत्र से जुड़ी विशेषता
कुंडेश्वर महादेव मंदिर के गुंबद में बने श्री यंत्र का भी खास महत्व है, जो कि कुबेर देव और भगवान श्रीकृष्ण की समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. यह यंत्र शुभता और धन के स्थायित्व का प्रतीक है, जिससे कुबेर जी के दर्शन से समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है.