दांत साफ कर रहे बच्चे की भाई ने ऐसे थपथपाई पीठ, गले में फंस गया ब्रश; मची चीख-पुकार…

दांत साफ करते समय एक बच्चे के गले में ब्रश फंस गया। दर्द के मारे बच्चे की चीख-पुकार मच गई। हालत और बिगड़ने लगी तो घरवाले उसे अस्पताल ले गए।…

दांत साफ कर रहे बच्चे की भाई ने ऐसे थपथपाई पीठ, गले में फंस गया ब्रश; मची चीख-पुकार…

दांत साफ करते समय एक बच्चे के गले में ब्रश फंस गया। दर्द के मारे बच्चे की चीख-पुकार मच गई। हालत और बिगड़ने लगी तो घरवाले उसे अस्पताल ले गए।

बच्चे की जान बचाने के लिए डॉक्टरों को उसकी सर्जरी करनी पड़ी। डॉक्टरों ने बताया कि अगर समय रहते सर्जरी नहीं होती तो सांस न ले पाने के कारण उसकी मौत भी हो सकती थी।

डॉक्टरों ने उसी दिन गले का ऑपरेशन करके उसे अस्पताल से भी छुट्टी दे दी।
 
पुडुचेरी का सरकारी अस्पताल महात्मा गांधी पोस्ट ग्रेचुएट इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल साइसेंज (एमजीपीजीआईडीएस)के डॉक्टरों ने किशोर की जान बचाई।

डॉक्टरों की टीम ने 14 वर्षीय लड़के के गले में फंसा टूथब्रश निकाला है। 45 मिनट के कठिन ऑपरेशन के बाद अस्पताल ने बच्चे को उसी दिन डिस्चार्ज भी दे दिया। हालांकि डॉक्टरों का कहना था कि ऑपरेशन इतना आसान नहीं था। 

लड़के की पहचान विल्लुपुरम जिले के किलियानूर के किसान सुरेश के बेटे एस दीबेश के रूप में हुई है। उसे शनिवार की सुबह तब अस्पताल में भर्ती किया गया, जब डॉक्टरों को जानकारी हुई कि उसके गले में ब्रश फंस गया है।

जानकारी के अनुसार, दीबेश अपने भाई के साथ ब्रश कर रहा था। तभी खेल-खेल में उसके भाई ने उसकी पीठ जोर से थपथपा दी।

इससे हुआ यूं कि दीबेश के हाथ से ब्रश की पकड़ ढीली हुई और ब्रश उसके गले के अंदर जाकर फंस गया। मारे दर्द के दीबेश की चीख निकलने लगी। जब उसके घरवालों को यह जानकारी मालूम हुई तो उन्होंने उसे तुरंत अस्पताल ले जाने का फैसला लिया।

जरा सी भी देरी होती तो नहीं बच पाता किशोर
अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि बच्चे के इलाज में अगर थोड़ी भी देरी होती तो उसकी जान भी जा सकती थी। एमजीपीजीआईडीएस के डीन डॉ. एसपीके कैनेडी बाबू और प्रोफेसर और प्रमुख (ओरल और मैक्सिलोफेशियल सर्जरी) डॉ. के. शंकर के नेतृत्व में डॉक्टरों की एक टीम ने बच्चे के गले से टूथब्रश को हटाने के लिए सर्जरी की।

डॉक्टर बाबू ने कहा, “टूथब्रश का एक पूरा पिछला हिस्सा लड़के के गले में बुरी तरह फंस गया था। इसलिए हमने इमरजेंसी में ऑपरेशन करने का फैसला लिया।

हम चाहते थे कि बच्चे के गले को बिना नुकसान पहुंचाए उसकी परेशानी दूर कर ली जाए। अगर इलाज में थोड़ी भी देरी होती तो उसके गले का हिस्सा सूज जाता, जो सांस की नली को नुकसान पहुंचा सकता था और सांस लेने में तकलीफ के कारण उसकी जान भी जा सकती थी। 

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