कागजी रिकॉर्ड बचाने कागजों में पाली जा रही बिल्ली

प्रदेश के सरकार कार्यालयों ई-ऑफिस व्यवस्था शुरू भोपाल । मप्र वाकई अजब है, गजब है। यहां सरकारें बदलती हैं, ऑफिस बदल जाते हैं, अफसर बदल जाते हैं, व्यवस्था बदल जाती…

कागजी रिकॉर्ड बचाने कागजों में पाली जा रही बिल्ली

प्रदेश के सरकार कार्यालयों ई-ऑफिस व्यवस्था शुरू

भोपाल । मप्र वाकई अजब है, गजब है। यहां सरकारें बदलती हैं, ऑफिस बदल जाते हैं, अफसर बदल जाते हैं, व्यवस्था बदल जाती है, लेकिन कायदे-कानून फाइलों में पहले की ही तरह दौड़ते रहते हैं। ऐसा ही एक मामला चर्चा में है। वह व्यवस्था है बिल्ली पालने की। दरअसल मंत्रालय सहित सभी कार्यालयों में कागजी फाइलों को चूहों से बचाने के लिए बिल्ली पालने के नियम-कानून बने थे। आज लगभग सारे कार्यालयों में ई-ऑफिस व्यवस्था शुरू हो गई है, लेकिन सरकारी कार्यालयों में कागजों पर अब भी बिल्ली पाली जा रही है।
जानकारी के अनुसार मंत्रालय में आज भी 65 साल पुराने नियम कानून फाइलों में दौड़ रहे हैं। जिसमें मंत्रालय से तहसील तक के दफ्तरों में बिल्ली पालने की व्यवस्था की गई थी। इससे दफ्तरों के तहखानों में जमा कागजी रिकॉर्ड चूहों से बच जाता है। इसके दूध की व्यवस्था मंत्रालय के आकस्मिक निधि से होती है। कलेक्ट्रेट में ये काम नाजिर करते हैं। लेकिन, अब ई ऑफिस शुरू हो गए हैं। बजट के भी सभी रिकॉर्ड ऑनलाइन हैं। बिल्ली के दूध का पैसा आज भी फाइलों में चढ़ रहा है। लेकिन यह दूध बिल्ली पी रही है या अधिकारी इसकी किसी को जानकारी नहीं है। राज्य मंत्रालय सूत्रों की मानें तो आज भी प्रति बिल्ली 5 रूपए के हिसाब से फंड आता है लेकिन बिल्ली के दूध का यह फंड कहां जा रहा है किसी को नहीं मालूम। जिम्मेदारों का कहना है कि शासन की ओर से इस तरह का कोई बजट बिल्ली के नाम पर आता है तो उन्हें इसकी जानकारी नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि बिल्ली दूध खुद बिल्ली पी रही है या उसके हिस्से का दूध अधिकारी पी रहे हैं।

 

दो सौ से ज्यादा अप्रासंगिक कानून आज भी

मप्र में विडंबना यह है कि आज प्रदेश के सभी कार्यालयों का आधुनिकीकरण हो गया है। लगभग सभी विभागों में व्यवस्था हाईटेक हो गई है। लेकिन राज्य मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार वर्तमान समय में कई पद आज भी फाइलों में मौजूद है जो कि अब चलन में नहीं। देखा जाए तो सामान्य प्रशासन विभाग के तहत टाइप राइटर मैकेनिक, घड़ीसाज, जिल्दसाज, कारपेंटर आदि के पद आज रिकार्ड में दिखाई देते हैं। गौरतलब है कि 64 शासकीय विभाग में करीब दो सौ से ज्यादा अप्रासंगिक कानून ऐसे हैं जिनकी आज जरूरत नहीं है। सरकार जिसे खत्म करने की तैयारी कर रही है। हालांकि तत्कालीन मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैस ने इन पदों को खत्म करने के लिए विभागीय अधिकारी को कानून की सूची बनाने के लिए कहा था लेकिन वर्तमान समय तक अधिकारी इन पदों की सूची उपलब्ध नहीं करा सके। ऐसे में यह पद आज भी मौजद है।

व्यवस्था बदली, पद बरकरार

मंत्रालयीन सूत्रों के अनुसार प्रदेश में 2 लाख से ज्यादा सरकारी पद खाली हैं, जिनमें से 1 लाख इसी साल भरे जाना हैं। इनमें कई पद ऐसे हैं जो अप्रासंगिक हो गए हैं, जिनकी जरूरत नहीं है। इन पदों को डाइंग कैडर (अनुपयोगी पद) में कर नए पद बनाए जाएंगे। टाइपिंग मशीन पूरी तरह से सरकारी दफ्तरों में खत्म हो चुकी है, उनकी जगह कंप्यूटर ने ले ली है। बावजूद इसके अभी भी टाइपिंग मशीनों की रिपेयरिंग के लिए दफ्तरों में टाइपराइटर मैकेनिक की पोस्ट है। राजपत्र और सरकारी रिकार्ड में पुढे चढ़ाने के लिए जिल्दसाज का पद था। जिल्दसाज किताबों की बाइंडिंग भी करता था, लेकिन अब ये सारे दस्तावेज आन लाइन है। फिर भी कार्यालयों में जिल्दसाज कार्यरत है। पूर्व में साइक्लो स्टाइल मशीन चलन में थी, जिनमें स्टेंसिल कटता था, जो पतले प्लास्टिक का रहता था। इसमें टाइपिंग करने में प्लास्टिक से कटकर अक्षर टाइप हो जाते थे और मैटर टाइप हो जाता था, स्याही लगा दी जाती थी, जिससे एक बार में 70 से 80 कॉपी निकल जाती थी। ये मशीनें दफ्तरों से पूरी तरह से हट चुकी हैं, लेकिन इन्हें चलाने के लिए डुप्लीकेटिंग सुपरवाइजर कार्यरत हैं। दफ्तरों में दीवार घड़ी का चलन बंद हो गया है। यह वह घड़ी थी जिनमें 24 घंटे में एक बार चाबी भरना जरूरी था। ये घडिय़ां एक दशक पहले बंद हो चुकी हैं। लेकिन आज भी सरकारी दफ्तरों में हैं। इन्हें भरने का काम घड़ीसाज आज भी फाइलों में कर रहे हैं। जिसकी जगह अब स्मार्ट वॉच ने ले ली है। सरकारी कार्यालयों में लकड़ी के टेबल कुर्सी की जगह नए रेडिमेड फर्नीचर ने ले ली है। जोकि टिकाऊ और मजबूत हैं। अब विभागों में टेबल – कुर्सी बनाने का काम खत्म हो चुका है। लेकिन इसके बावजूद भी कारपेंटर कार्यरत हैं।