ग्रामीणों ने समस्या का खोजा हल:पहाड़ से रिस रहे पानी को इकट्‌ठा करने ग्रामीणों ने बनाया चेकडेम, इससे 300 एकड़ में सिंचाई, पर्यटन का केंद्र भी बना

बिलासपुर/ खेती और निस्तारी के लिए पानी की कमी से जूझने वाले चुमरा के ग्रामीणों ने पहाड़ों से बूंद-बूंद रिसने वाले पानी को एक जगह इकट्‌ठा करना शुरू किया। जल संसाधन…

ग्रामीणों ने समस्या का खोजा हल:पहाड़ से रिस रहे पानी को इकट्‌ठा करने ग्रामीणों ने बनाया चेकडेम, इससे 300 एकड़ में सिंचाई, पर्यटन का केंद्र भी बना

बिलासपुर/ खेती और निस्तारी के लिए पानी की कमी से जूझने वाले चुमरा के ग्रामीणों ने पहाड़ों से बूंद-बूंद रिसने वाले पानी को एक जगह इकट्‌ठा करना शुरू किया। जल संसाधन विभाग ने चेकडैम बनाने में मदद की। अब इसी पानी से 300 एकड़ जमीन पर सिंचाई होती है। धान और सब्जियां उगा रहे हैं। पेयजल और निस्तार के लिए भी उपयोग होता है।

पहाड़ों से घिरे गांव में चेकडैम बनने के बाद अब यह पर्यटन स्थल के रूप में भी डेवलप होता जा रहा है। दूरदराज के लोग अब यहां पिकनिक मनाने आते हैं। बलरामपुर-रामानुजगंज जिले के पहाड़ों से घिरे गांव चुमरा में करीब 64 साल पहले ग्रामीणों के सामने रोजी-रोटी का संकट था। रामचंद्रपुर ब्लॉक की चार हजार आबादी वाले गांव के लोग खेती नहीं कर सकते थे, क्योंकि वहां पानी की कोई व्यवस्था नहीं थी।

सुदूर जंगल में होने के कारण बिजली भी नहीं थी। बारिश होती थी, लेकिन पानी बह जाता था, इसलिए ठंड और गर्मी के दिनों में खेती भी नहीं हो पाती थी। अपनी किस्मत पर रोने के बजाय ग्रामीणों ने समस्या का हल निकाला। गांव से तीन किलोमीटर दूर जोवा पहाड़ से पूरे साल पानी रिसता है।

यह पानी पहले व्यर्थ बह जाता था। ग्रामीणों ने इसे रोका। इसके बाद नाली बनाकर गांव के एक छोर तक लेकर आए। जब पानी मिलने लगा तो खेती शुरू हो गई। इस बीच जल संसाधन विभाग को जब खबर मिली तो उन्होंने ग्रामीणों की मदद के लिए चेकडैम बना दिया। इस तरह पूरे साल पानी की व्यवस्था हो गई। ग्रामीण धान के साथ सब्जियां भी उगाने लगे। यहां मसूर, चना और मटर की फसल लेते हैं। इसे बाजार में बेचते भी हैं।