गहरे ध्यान का अनुभव कैसे करें?

ध्यान कोई क्रिया नहीं है; यह ‘कुछ न करने’ की कला है. जब मन शांत होता है तभी आप ध्यान का अनुभव कर सकते हैं. जब मन किसी कार्य में…

गहरे ध्यान का अनुभव कैसे करें?

ध्यान कोई क्रिया नहीं है; यह ‘कुछ न करने’ की कला है. जब मन शांत होता है तभी आप ध्यान का अनुभव कर सकते हैं. जब मन किसी कार्य में व्यस्त रहता है तो वह थक जाता है, क्योंकि किसी भी तरह की एकाग्रता, चिंतन या मन की कोई भी गतिविधि आपके शरीर की ऊर्जा को नष्ट करती है. ध्यान आपको थकाता नहीं है, बल्कि यह आपको गहरा विश्राम देता है. ध्यान के समय हम देखने, सुनने, सूंघने, चखने जैसी सभी इंद्रिय गतिविधियों से दूर हो जाते हैं. इससे मिलने वाला विश्राम लगभग गहरी नींद जैसा है, लेकिन ध्यान नींद नहीं है.

ध्यान माने सब कुछ छोड़कर विश्राम करना. जब आप घूमना-फिरना, काम करना, बात करना, देखना, सुनना, सूंघना, चखना, सोचना सब कुछ बंद कर देते हैं केवल तभी जाकर आपको नींद आती है. हालांकि नींद में भी आपके भीतर कुछ अनैच्छिक क्रियाएं जैसे सांस लेना, दिल की धड़कन, भोजन पचाना, रक्त-संचार आदि ही रह जाते हैं लेकिन नींद भी पूर्ण विश्राम नहीं है.

हमारी चेतना की चार अवस्थाएं हैं: जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति और ध्यान की अवस्था. जब आप भीतर से सजग हैं, लेकिन फिर भी पूरी तरह से विश्राम की गहरी अवस्था में हैं, वही ध्यान है. जब मन स्थिर हो जाता है तभी ध्यान लगता है.

जब मन में किसी भी प्रकार की इच्छा बनी रहती है उस समय ध्यान लगना मुश्किल होने लगता है. इसलिए भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं, ‘जब तक सभी तरह का संकल्प नहीं छूटता, तब तक मन शांत नहीं होता.’ मान लीजिए कि सोने से पहले आपके मन में एक विचार आता है कि लाइट का स्विच बंद करना है तो आंख बंद करके आप सोने की कितनी भी चेष्टा कर लें आपको नींद नहीं आएगी. आपके मन में यही विचार चलता रहेगा कि, अरे स्विच नहीं बंद किया. जैसे यदि आपकी आंख में रेत का केवल एक छोटा सा कण पड़ जाए तो वह न तो आपको आंख बंद करने देता है और न ही आंख खोल के देखने देता है. इसी तरह से मन यदि विचारों में अटक जाता है तो हो सकता है कि एकदम फालतू का विचार हो, लेकिन वह भी आपको परेशान कर डालता है. इसलिए मन को शांत करना हो तो वैराग्य में आ जाएं. यह सोचिए कि हम सब एक दिन मरने वाले हैं. मृत्यु के ज्ञान से मन शांत हो जाता है.

क्या आपने देखा है कि जब आप किसी की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं, तब आपके मन में क्या हो रहा होता है? प्रतीक्षा की प्रक्रिया में आप हर बीत रहे पल का निरीक्षण करते हैं और यही प्रतीक्षा आपको ध्यान में ले जा सकती है. जब आपको प्रतीक्षा करनी होती है तब आप या तो निराश हो सकते हैं या फिर ध्यानमग्न हो सकते हैं. समय का अनुभव करना ही ध्यान है.

ध्वनि से मौन तक, गति से स्थिरता तक की यात्रा ही ध्यान है.

हालांकि ध्यान कर्म या क्रिया से विपरीत प्रतीत होता है, लेकिन ध्यान क्रिया का पूरक है. हम देखते हैं कि जीवन में सब-कुछ परिवर्तित हो रहा है. ये परिवर्तन हम इसलिए जान पाते हैं, क्योंकि हमारे भीतर कुछ ऐसा है जो परिवर्तित नहीं हो रहा है. वह जो सदा हमारे साथ है हम उसे आत्मा या चेतना का अपरिवर्तित पहलू कहते हैं. ध्यान हमारी चेतना के उस स्थिर और अपरिवर्तनशील संदर्भ बिंदु तक की यात्रा है.

आसन, प्राणायाम, संतुलित भोजन और ज्ञान

ये सभी गहरे ध्यान में उतरने में मदद करते हैं. प्रायः लोग सोचते रहते हैं कि ध्यान के दौरान कोई शोर नहीं होना चाहिए पर ऐसा नहीं है. यदि आपके आस-पास आवाज जो रही हो तो गहरे ध्यान में जाने के लिए वातावरण में हो रही आवाजों को ध्यान से सुनें और उन्हें स्वीकार कर लें, उनसे लड़ें नहीं. आप जितना अधिक शोर से छुटकारा पाना चाहेंगे, वह आपको उतना ही अधिक विचलित करेगा. यह मन का सिद्धांत है कि आप जिस किसी चीज का विरोध करते हैं वह उतना ही अधिक प्रबल बना रहता है और इससे समस्या समाप्त नहीं होती. इसलिए सबसे पहले आपको उसका विरोध बंद करना चाहिए. ध्यान की गहराई में जाने के लिए प्राणायाम का अभ्यास करें. प्राणायाम से आपका मन स्थिर होने लगता है और ध्यान करना आसान हो जाता है.

हमारा भोजन भी ध्यान पर गहरा प्रभाव डालता है. भोजन को तीन श्रेणियों में बांटा जाता है- सात्विक, राजसिक और तामसिक. तामसिक भोजन के सेवन से बहुत अधिक आलस्य, तन्द्रा और जड़ता आती है. यदि शरीर में बहुत अधिक तामसिक ऊर्जा हो तो आप ध्यान करने के लिए बैठेंगे लेकिन नींद में चले जाएंगे. ऐसे ही राजसिक भोजन के सेवन से हमारे मन में उतार-चढ़ाव होते रहते हैं, जैसे कभी आप बहुत खुश अनुभव करेंगे और कभी छोटी सी बात पर ही उदास हो जाएंगे.

जब शरीर में रजस असंतुलित हो जाता है तब मन में बहुत से विचार आने लगते हैं और बेचैनी होने लगती है. रजस के कारण ध्यान में हमारा शरीर एक स्थिति में स्थिर नहीं रह पाता और हम ध्यान में नहीं जा पाते. इसका यह अर्थ नहीं है कि आप राजसिक भोजन बंद कर दें. अगर सभी लोग हमेशा शांत और एकसमान स्थिति में रहें तो जीवन में कोई रंग ही नहीं होगा. थोड़ा बहुत रजस जीवन को रंगीन बनाता है लेकिन जब यह अधिक होने लगे और असहनीय लगे तो फिर आपको सात्विक आहार की ओर मुड़ना चाहिए. सात्विक और हल्का आहार आसानी से पच जाता है और शरीर को त्रिदोषों से मुक्त रखता है जिससे आपके ध्यान में गहराई आती है.